परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【संसार चक्र】-
कल से आगे
:- (छठा दृश्य)
-(सुबह आठ बजे का वक्त है। राजा दुलारेलाल, रानी, इंदुमती और गोविंद कुण्ड पर स्नान के लिये जाने की तैयारी कर रहे है।
पंडित गरुडमुख का नौकर दाखिल होता है।)
नौकर-महाराज जी!पंडित जी ने पुछवाया है स्नान के लिये कै बजे चलोगे और साथ के लिये कोई आदमी तो दरकार नहीं होगा?
दुलारेलाल-ग्रहण कितने बजे लगेगा?
नौकर-साढे दस बजे।
दुलारेलाल-तो हम अभी चल रहे है, हमें कोई साथी दरकार नही है।
नौकर-रात की बात याद रखना और खूब होशियार रहना। मैंने अपने बाप को सब बाते दी है।
सडक छोडकर दूसरे किसी रास्ते से न जाना।
इंदुमती-बेटा जीते रहो, यह तुम्हे एक अँगूठी देती हूँ, इसे पहनना।
नौकर-(ममनून होकर) आप लोग कौन है? सच सच कहना।
इंदुमती-ये भूमिगाँव के राजा है, मैं इनकी रानी हूँ। (अँगूठी देती है,
नौकर लेता है और हाथ जौड कर प्रमाण करता है।)
नौकर-आपने बडी कृपा की है, कभी मौका लगा तो आपकी यादगार लेकर आपकी राजधानी में हाजिर हूँगा।
दुलारेलाल-जब जी चाहे चले आना, तुमने हम पर बडा एहसान किरा है।
नौकर -रास्ते में खूब सावधान रहना। हो सका तो मैं अपने बाप को लेकर तुम्हे रास्ते मिलूँगा।
(जाता है)
इंदुमति- दुनिया भी बडी अजीब है। इसमें भला बुरा और मीठा कडवा पास ही पास रहते है। भला इस लडके को क्या पडी थी कि हमसे इतना हित करता और उन दुष्टो का हमने क्या बिगाड़ा था जो हमारी जान के पीछे पडते?
दुलारेलाल-और तमाशा यह है कि इस पर लोग कहते है कि संसार मिथ्या है। अच्छा अब चलो, वक्त तंग है मगर मुझे अब स्नान वस्नान में श्रद्धा नही रही है।
इंदुमती-अब यहाँ आ गये है स्नान कर ही लै, बार बार यहाँ किसे आना है। क्या इन चार दुष्टों की वजह से तीर्थ तीर्थ न रहेगा? हमारे परखाओं ने यहाँ धर्मयुद्ध किया है। कृष्ण जी ने यहाँ गीता का उपदेश सुनाया है। क्या यह सब महात्म जाता रहा? (रवाना होते है।)
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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