ब्रह्म विद्या और प्राण के आयाम 🙏🙏
-----------------
"#तत्त्वमसि"
-- छान्दोग्य उपनिषद (6.8.7)
* सामान्य अर्थ है, तत् त्वम् असि, अर्थात् तुम भी वही हो। #अहं_ब्रह्मास्मि के उद्घोष के पश्चात् वह ब्रह्म-योगी-गुरू अपने शिष्य को ब्रह्मविद्या के अंतर्गत शिक्षा प्रदान करता है।
* "असि" पद के दो अर्थ मान्य हैं, कटार और श्वास। विशिष्ट अर्थ हुआ कि श्वास को कटार की तरह उपयोग कर ब्रह्मबोध करे। अर्थात्, तुम श्वास हो और इससे ही ब्रह्मबोध संभव है।
* श्वास के बिना जीवन असंभव है, लेकिन श्वास प्राणवायु है और ब्रह्म प्राण का ही सर्वोच्च आयाम है। प्राणायाम की विशिष्ट क्रियाओं से प्राण को साधा जाता है। यह ही विशिष्ट साधना है।
* प्राणजय सिद्धि है इच्छित काल तक श्वास के बिना ध्यान-समाधि में स्थिर होना। कुछ काल के अभ्यास से शरीर से सामान्य कर्म करते हुए भी श्वास की आवश्यकता कम हो जाती है।
* #तत्त्वमसि का एक और अर्थ है। तत्त्वम् असि, अर्थात्, तुम तत्त्व स्वरूप हो। सांख्य की दृष्टि से तत्त्व 24 माने गए हैं। 5 महाभूत, 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, 5 तन्मात्र और 4 अन्त:करण।
- 5 महाभूत हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
- 5 ज्ञानेन्द्रियां हैं, नेत्र, कर्ण, नासिका, जिह्वा और त्वचा।
- 5 कर्मेन्द्रियां हैं, हस्त, पाद, उपस्थ, पायु और वाणी।
- 5 तन्मात्र हैं, चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, रसना और त्वक्।
- 4 अंत:करण हैं, मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त।
* श्वास को कटार की तरह उपयोग कर 24 में से 23 तत्त्वों का अपने अपने कारण में विलय करने से चौबीसवें तत्त्व चित्त में स्थित सूक्ष्म संस्कार स्वरूप सारे बन्धनों का लोप हो जाता है।
* बन्धन मुक्त चित्त ही चैतन्य आत्मा है और पराशक्ति से युक्त होने की क्षमता प्राप्त करता है। "#अयम्_आत्मा_ब्रह्म, तब यह पराशक्ति युक्त चैतन्य आत्मा ही ब्रह्म कहा जाता है।
* यह ही ब्रह्म विद्या है।
सुशील जालान, 12.05.2020.🙏🙏
----------------
No comments:
Post a Comment