परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र 】
कल से आगे-( पाँचवा दृश्य)
-( रात का वक्त है -राजा दुलारेलाल, इंदुमती गोविंद मुलाजिम बैठे हैं ।)
दुलारेलाल- बडे दुष्टो के बस में आ पड़े हैं। देखो गोविंद! रात भर पहरा देना होगा। तुम भी जागो, मैं भी जागूँगा, ऐसा न हो रात को कोई वारदात हो जाय।
इंदुमती -ऐसे ही दुष्ट धर्म और तीर्थस्थानों को बदनाम कराते हैं।
गोविंद - महाराज बेफिक्र रहें, मैं रात भर पहरा दूंगा। इन भिखमांगो से क्या डरना? ये कमीने लोग हैं।
दुलारेलाल-दुश्मन को कभी हकीर मत जानों। जब तक कुरूक्षेत्र से निकल न जायँ, पूरे खबरदार रहो। वह लडका आने क़ो था, अब तक नहीं आया ,जरा देखो तो?
( गोविंद जाता है और राजा दरवाजा खोल कर देखता है और थोडी देर के बाद लडके को साथ लेकर आता है।)
लडका- महाराज! बड़ी मुश्किल से आया हूँ।
पंडित जी अभी घर गये हैं तो मुझे फुर्सत मिली है, तुम्हारी जान जोखों में है, यहाँ तुम लोग होशियार रहना जितनी जल्दी हो सके यहां से चले जाना । ये सब लोग ठग है, ब्राह्मण व पण्डे नहीं है, नीची जात है । इनका पेशा धोखे से लोगों को मारना और लूट लेना है । इनका जरा भरोसा ना करना, इनकी किसी बात में न आना ।
दुलारेलाल - क्या पंडित गरुडमुख भी ठग है?
लड़का -यह ठगो की मंडली का नायाब सरदार है।
दुलारेलाल-क्या ये हमसे लडाई झगड़ा करेंगे?
लड़का -नहीं नही ये हमेशा धोखे से काम लेते हैं ।सामने होकर कभी नहीं लडते। रुमाल के सिरे पर मसूरी पैसा बांध लेते हैं ,पीछे से आकर चुपचाप रुमाल फेंकते है। पैसे से गिरह लग जाती है और एक झटका देने से दम निकल जाता है।
दुलारेलाल-मगर तुम ऐसे दुष्टो के साथ क्यों रहते हो?
लडका-मेरा बाप सरकारी खुफिया पुलिस में नौकर है। मैं उसको खबरें देता हूँ। इनके बहुत से साथी पकड़े जा चुके हैं , इनका भी नम्बरआने वाला है। मैं अब जाता हूँ ,ऐसा न हो पंडित जी आ जाये और मुझे घर पर न पा कर शुबह करने लगें।
इंदुमती-रात को तो कोई अंदेशा नही है?
लड़का-नहीं रात को कोई अंदेशा नही है। ये लोग तुम्हे जंगल में ले जाने की कोशिश करेंगे, किसी हालत में जंगल की तरफ न जाना। इन पाँच छ: आदमियों की टोली है। सडक पर जो तीन पंडे आपको मिले थे वे तीनों इसी टोली के आदमी है।।
दुलारेलाल- यहाँ का पुलिस स्टेशन कहां है?
लड़का- दो मील के फासले पर है, अमृतकुंड के पास है। अच्छा हो कि तुम लोग किसी बहाने से वहां पहुंच जाओ। इसी में तुम्हारी भलाई है । मेरा बाप सुबह 4:00 बजे मिलने आवेगा, मैं उससे सब हाल कह दूँगा ।
इंदुमती -भाई जीते रहो, तुम हमारे सच्चे मित्र हो।
( लड़का जल्दी से चला जाता है।)
दुलारेलाल- यह है संसार का हाल । क्या यह सब ख्वाब की बातें है? हर्गिज नहीं। मैं कभी संसार को ख्वाब नही मानूँगा।इंदुमती! देखो हम दान पुण्य करें और ये लोग हमारी जान के पीछे पडे। हम घर से दुखी होकर सुख शांति की तलाश में यात्रा को निकलें और तीर्थस्थान में पहुँच कर अपने तई भेडियों के गार में पावें। कहाँ है धर्म? कहा है ईश्वर?
इंदुमती-ईश्वर तो है। यह लडका आपको न मिलता तो कैसे शुबह होता? और इस वक्त यह लडका न आता तो कैसे सारा भेद मालूम होता?
दुलारेलाल- बेशक ईश्वर का हाथ तो नजर आता है मगर संसार का कुछ पता नहीं चलता। ऐसा मालूम होता हैं कि हमारी पृथ्वी मिलौनी का देश है क्योंकि यहाँ रोशनी अँधेरा, रहम जुल्म, धर्म अधर्म दोनों ही हैं।
इंदुमती- गऊ शेर, बकरी भेडिया दोनों ही हैं।
दुलारेलाल-इसी वजह से यहाँ पाप है। पापकर्मों से कष्टो होता है, बेजा कष्ट मिलने पर लोग ईश्वर से विमुख हो जाते हैं। उनकी समझ बूझ चक्कर खा जाती है। उनकी समझ बहुत बूझ चक्कर खा जाती है ।
इंदुमती- पर भगवान ने इसमें भी कुछ भलाई ही रक्खी है।
गोबिंद-महाराज! मेरा ख्याल तो यह है कि ये लोग तलवार से डरते हैं इसलिये दो एक मर्तबा तलवार दिखला दीजिये।
दुलारेलाल-देखो भगवान् क्या कराता है।
(राजा दुलारेलाल और रानी इंदुमती सो जाते है। गोविंद तलवार लिये पहरा देता है।) क्मशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत- 13 नवंबर 1932- रविवार -
सुबह सत्संग के बाद हवाखोरी के लिए गये। लौटते वक्त मोटर बैठ गई। मजबूरन पैदल वापस आये। मोटर घर से तीन फर्लांग के फासिले पर ही पर बिगड़े थी। 9:15 बजे घर पहुंचे । हजारों मर्द व औरत शामियाने के नीचे जमा थे ।11:15 बजे तक सवाल जवाब होते रहे।।
2:00 बजे सर गणेश दत्त सिंह साहब मिलने तशरीफ़ लाये। और 4:00 बजे तक बातें होती रहीं। आप को इजाद का शौक है। तीन ऐसी बातें आपने बतलाई जो मॉडल इंडस्ट्रीज के लिए निहायत मुफीद है।।
4:00 बजे अंधा स्कूल देखने गये। मिस्टर मित्रा, बानी सेक्रेटरी अपने हमराह ले गये थे। अंधे लड़कों का इंतिहान लिया। यह लड़के उंगलियों से छू कर हरूप पढ़ते थे। और हरूप कागज में सुराग करके बनाये जाते थे। एक लड़के को गणित का सवाल दिया गया उसे ठीक जवाब निकाला। कुछ लड़के बेंत की चीजें बनाते थे। गर्जेकि सब काम काबिले तारीफ पाया।। मैंने मदद देने का वादा किया ।।
लौटने पर सेठ चमरिया को दीन दुनिया के ड्रामे में से कुछ सीन पढ़कर सुनाये। जो बहुत पसंद आये और निश्चित पाया कि दोनों ड्रामों की फिल्म तैयार कराई जाये।।
रात के सत्संग में मालिक की प्रसन्नता हासिल करने में कोशिश के मुतअल्लिक़ मश्वरा दिया गया। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:-
और वह पांच बातें यह हैं:- पहली- निर्णय इस बात का कि राधा संविधान कुल मालिक और राधास्वामी दयाल कुल मालिक और सर्व समरथ और सच्चे माता पिता कुल रचना के हैं।।
दूसरी-यह कि सूरत शब्द मार्ग सच्चा और पूरा और शहद में धुरपद तक तक पहुंचाने वाला रास्ता और तरीका अभ्यास का है। इससे बढ़कर कोई जुगत या रास्ता रचना भर में नहींहै और न हो सकता है, क्योंकि और जितने रास्ते हैं वह सब उन चारों के वसीले के हैं जो माया की हद में खत्म हो जाती है और इस सबब से दयाल देश तक नहीं पहुंच सकते । और यह मार्ग जान यानी रूह या सूरत की धार पर सवार होकर चलने का है, और जोकि जान या रुह या सुरत कुल रचना में सबसे बढ़कर जौहर है और सब रचना उसी के हाथ में ठहरी हुई है और उसी से हो रही है, इस वास्ते इस धार से बढ़कर और कोई धार नहीं है।
तीसरी -यह कि मन और इंद्रियों का खमीर माया के मसाले का है इस वास्ते उनका असली झुकाव बाहर और नीचे की तरफ संसार के भोग और पदार्थों में है।।
जरूरत के मुआफिक उनकी कार्रवाई दुरुस्त समझी जाती है, मगर फिजूल तरंगे जरूरत से ज्यादा चाहे उठाने में हर्ज और नुकसान है। इस वास्ते अभ्यासी को थोड़ी बहुत रोक को संभाल अपने मन और इंद्रियों की खासकर वक्त व्यास के बहुत जरूरी है , नहीं तो भजन और ध्यान का रस जैसा चाहिए नहीं आएगा।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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