_ #श्रीराम
गत पोस्ट से आगे______७
एतच्छु त्वा रहः भूतो राजानमिदमब्रवीत् ।
ऋत्विग्भिरुपदिष्टोSयं पुरावृत्तो मया श्रुतः ॥ १ ॥
यज्ञ की चर्चा सुन, सुमंत्र ने एकांत में महाराज से कहा कि, मैंने ऋत्विजों से एक पुरानी बात सुनी है।
सनत्कुमारो भगवान्पूर्व कथितवान्कथाम् ।
ऋषीणां संनिधौ राजंस्तव पुत्रागमं प्रति ॥ २ ॥
आपके संतान के वारें में भगवान् सनत्कुमार ने ऋषियों से यह कथा कही थी।
कश्यपस्य तु पुत्रोऽस्ति विभण्डक इति श्रुतः ।
ऋश्यशृङ्ग इति ख्यातस्तस्य पुत्रो भविष्यति ॥ ३ ॥
कश्यपपुत्र विभण्डक के ऋष्यशङ्ग नामक पुत्र होंगे।
स वने नित्यसंवृद्धो मुनिर्वनचरः सदा ।
नान्यं जानाति विप्रेन्द्रो नित्यं पित्रनुवर्तनात् ॥४॥
वे वन ही में रहेंगे और सदा वन में पिता के पास रहने के कारण किसी स्त्री या पुरूष को नहीं जान पाएंगे।
द्वेविध्यं ब्रह्मचर्यस्य भविष्यति महात्मनः ।
लोकेषु प्रथितं राजन्विप्रैश्च कथितं सदा ।। ५ ॥
ऋष्यश्रृंग दोनों प्रकार के ब्रह्मचर्य, जो ब्राह्मणों के लिए बतलाए गए हैं, और समस्त लोकों में प्रसिद्ध हैं, को धारण करेंगे।
तस्यैवं वर्तमानस्य कालः समभिवर्तते ।
अग्नि शुश्रूषमाणस्य पितरं च यशस्विनम् ॥ ६ ॥
अग्नि और अपने यशस्वी पिता की सेवा करते हुए जब ऋष्यशृङ्ग को बहुत समय बीत जायगा।
एतस्मिन्नेव काले तु रोमपाद: प्रतापवान् ।
अङ्गेषु प्रथितो राजा भविष्यति महाबलः ॥ ७॥
तब अंगदेश में महाबली और प्रतापी रेमपाद नाम का एक प्रसिद्ध राजा होगा।
तस्य व्यतिक्रमाद्राज्ञो भविष्यति सुदारुणा ।
अनावृष्टिः सुघोरा वै सर्वभूत भयावहा ।। ८ ॥
कुछ दिनों वाद रोमपाद के अत्याचार से वर्षा बंद होने के कारण मह विकराल सव प्राणियों को भयदायी दुर्भिक्ष पड़ेगा।
अनावृष्ट्यां तु वृत्तायां राजा दुःखसमन्वितः । ब्राह्मणाञ्श्रुतवृद्धांश्च समानीय प्रवक्ष्यति ॥९॥
तव वह राजा उस अनावृष्टि से दुःखी हो, सुविज्ञ पवं शास्त्रज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर पूछेगा।
भवन्तः श्रुतधर्माणो लोकचारित्रवेदिनः ।
समादिशन्तु नियमं प्रायश्चितं यथा भवेत् ।। १० ।।
आप तोग तोकाचार और वैदिकधर्मों के जानने वाले हैं । अतः आप हमारे उन कर्मों का जिनके कारण वर्षा नहीं हो रही, प्रायश्चित बतलाइये।
वक्ष्यन्ति ते महीपालं ब्राह्मणा वेदपारगाः ।
विभण्डकसुतं राजन्सर्वोपायेरिहानय ।। ११ ।।
राजा के इस प्रश्न को सुन, वेदपारग ब्राह्मण उत्तर देंगे कि, राजन् ! जैसे बने वैसे विभण्डक मुनि के पुत्र ऋष्यश्रृंग को यहाँ ले आइये।
आनीय च महीपाल ऋश्यशृङ्गं सुसत्कृतम् ।
प्रयच्छ कन्यां शान्तां वै विधिना सुसमाहितः ॥ १२ ॥
और उनको यहाँ लाकर उनका सत्कार कीजिये और यथा विधि उनके साथ अपनी कन्या शान्ता का विवाह कर दीजिए !
श्रीमदबाल्मीकिकृतरामायण के बालकाण्ड के नवम् सर्ग से लिये गए श्लोक एवं उनके अर्थ ....!
मेरा उद्देश्य मात्र मुख्य अंशों से अवगत कराना है जिससे आप अपने मूल ग्रंथों की वास्तविकता से अवगत हो सकें 🙏
_________क्रमशः ....@शिव
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