**परम गुरु हजूर महाराज-
पत्र भाग 1- कल से आगे-( 28)-
【 रचना का वर्णन की आदि में कैसे हुई 】
-(1) आदि में जब किसी किस्म की रचना नहीं हुई थी, तब अनामी पुरुष था और उसका स्वरूप अंडाकार था । स्वरूप के कहने से कोई आकारी रुप नहीं समझना चाहिए । यह स्वरूप अपार, अनंत , अवर्णनीय, अनादि और अरुप था, एक हिस्सा ऊपर का निर्मल यानी नूरानी या प्रकाशवान था और बाकी नीचे की तरफ दर्जे बदर्जे तहों या गिलाफो से ढका हुआ था।
इस तौर से जहां कि तह या गिलाफ शुरू हुआ, वहां से इस कदर प्रकाशवान् हिस्से से दूरी होती गई, उसी कदर नीचे की तह या गिलाफ भारी या मोटा होता गया। इस हालत में यह तह या गिलाफ कोई दूसरी चीज नही समझी जा सकती।
उसकी कैफियत ऐसी थी जैसे दूध के ऊपर मलाई। हरचंद मलाई दूसरी चीज नही है, मगर वह दूध नहीं हो सकती पर उसका गिलाफ या खोल होकर रहती है। और फिर उस मलाई में भी दर्जे होते हैं, जैसे निहायत बारीक और बारीक और फिर मोटी और ज्यादा मोटी वगैरह।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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