**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाक्यात- 2 दिसंबर 1932 -शुक्रवार:-
रावलपिंडी से एक साहब ने हजरत जिया कि एक रचना "मुकाम महमूद" भेजी है। तथ्यात्मक कलाम है। बड़ा दिलचस्प व अर्थ पूर्ण है ।
पढ़ने से मालूम होता है कि मुसलमान में अध्यात्मवाद की ईजाद ईरानियों ने से नहीं हुई ।बल्कि असली इस्लाम खुद प्रमुख है । अगर मुसलमान भाइयों के दिल में सचमुच खुदा व रसूल का इश्क घर कर ले तो पलक झपकते ही में हिंदुस्तान की कायापलट जावे और मगरिब के खुदा और मजहब के खिलाफ जेहाद के मुकाबले के लिए सच्चे ईश्वर पूजको की पंक्तियां सजी-धजी नजर आने लगे।
अऑनरेबिल चीफ जस्टिस टेरेल का अध्यक्षीय भाषण जो आपने हाल ही में पटना यूनिवर्सिटी के कन्वोकेशन में फरमाया प्रकाशित हुआ है ।आप चाहते हैं कि यूनिवर्सिटी के उपाधि से अब लिटरेचर और फिलास्फी को रवाना किया जावे।
क्या जरूरत है अब फारसी और संस्कृत पढ़ने की और पिछले जमाने की बारीक ख्यालों की उलझनों दिनों में पडने की? जो लोग फुर्सत रखते हो और जिनके पास खाने-पीने के लिए काफी हो वह अपना वक्त इन कामों में बखुशी लगावे लेकिन आप विद्यार्थियों को मजबूर करना कि फलसफा भाषाविज्ञान सीखने पर रुपया व वक्त नष्ट करें, नामुनासिब है।
इस विषय के बजाय विद्यार्थियों को ऐसे साइंस पढ़ायें जावे जिनसे वह आदमी बने, दुनिया के लिए दौलत पैदा करें ,अपना पेट भरे औरों को ग्रास दो ग्रास देने के काबिल बने। हिंदुस्तान में आगे ही काफी पंडित व फिलास्फल है कोई रोटी कमाने वाला भी चाहिए।
हस्तशिल्प, कृषि की ओर दूसरे देशों की तालीम के लिए इंतजाम हो वगैरह-वगैरह। मेरा चीफ जस्टिस सासब के ख्यालात से पूर्ण रूप से व दिली इत्तेफाक है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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