**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 संसार चक्र】
कल से आगे:-
दुलारेलाल -आज मेरे हृदय की ग्रंथियां खुल गई, मेरे संशय निवृत हो गये,मुझे शांति आ गई। संसार, संसार है। इसकी लहरें उठा करें- हम अपनी तरफ से कोई ख्वाहिश ना उठाएंगे। जो होता है हो, नहीं होता न हो। जहां तक हो सकेगा अपने को और दूसरों को सुखी करेंगे। इसकी लहरों की झपट से बचने की कोशिश करेंगे और जो भी चपेट में आ जाएंगे तो वह भी एक तमाशा ही होगा। कहिए तुलसी बाबा! आप क्या कहते हैं?
तुलसी बाबा- सत्य है, सत्य है। संसार चक्र जैसे चलता है चले । हम कौन होते हैं अपने बाँधनू बाँधने वाले? बाँधनू बांधने से ही कष्ट व निराशता होते हैं। संसार स्वप्न है तोस्वप्न ही सही, सत्य है तो सत्य सही, परंतु दिव्य चक्षु का विषय नया है। श्रीमद्भागवतगीता में इसका जिक्र आया है सो यह भी सत्य हैं। जो जगत् के गोरखधंधे को सुलझाना चाहे वह दिव्य चक्षु की सुधि ले, नहीं तो जैसा श्रीमान ने समझाया अपना काम चलावे।
इंदुमती- बाबा जी! उस बेचारी बुढ़िया के लिए क्या करोगे ?
तुलसी बाबा- अब यहाँ वहाँ एक समान है, आपके साथ भूमिगांव चलेंगे ।
(राजा साहब को मुखातिब करके )महाराज! मैं तो हमेशा से बुद्धिबिलास के खिलाफ रहा हूँ। जो आनंद हृदय की शुद्धता में है उसका कुछ वार पार पर नहीं है। शुद्ध हृदय के अंदर प्रेम लहर लहराने लगती है तो फिर उसका कहना ही क्या है -योग, ज्ञान ,वैराग्य सब फीके दरसते हैं । आज्ञा हो तो एक भजन गाया जाय।
सब मिलकर- हाँ हाँ जरूर गाइये और खूब प्रेम में भर कर गाइये।।
( गाना)
अरे मेरे बाप जी! ओ मेरे नाथ जी! मैं तुम चरन मस्ताना।। चरन कहो चहे जग उजियारा, जिन पकड़े तीन मिटा अँध्यारा , हो गये वह निष्पाप जी!
ओ मेरे बाप जी मैं! नहीं भेज पहिचाना।।।
चरन पाय मम नैन खुलाने ,
शांति हुई मन भर्म नसाने, और मिटे संताप जी! अहो मेरे बाप जी! मैं रहूं उर माही छिपाना।। मैं चरनन में रहूँ लिपटाई, उमंग सहित नित बढ़ाई, जहां चरन तहाँ आपजी! अहो मेरे बाप जी! मैं उनपर सद कुरबाना।।
दुलारेलाल - (राजासाहब से) श्रीमान जी! दिव्य चक्षु के बारे में भी कुछ फरमाइये, क्या मुझे भी दिव्य ज्ञान हो सकता है?
राजा साहब- जरूर हर किसी को ज्ञान हो सकता है । इसके बारे में कल बातचीत करेंगे, अब दूर से अब बहुत देर हो गई है।
(राजा साहब व तुलसी बाबा विदा होते हैं ।)
(ड्राप सीन)
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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