**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 1-
कल से आगे:-( 2)
जिस वक्त की अनामी पुरुष का यह स्वरूप था, उस वक्त जो उसका के नूरानी हिस्से से नीचे निहायत बारिक तह से ढका हुआ था, उसकी कशिश नूरानी हिस्से की तरफ जा रही थी जैसे जब किसी बर्तन में घी भरकर ऊपर का हिस्सा उसका रोशन कर दिया जावे तो उसके नीचे के घी की दौड़ रोशन घी की तरफ होती है और उस नीचे के हिस्से के घी की तह या गिलाफ धुआँ रुप होकर जुदा हो जाता है।
ऐसे ही जो नीचे का हिस्सा कि रोशन और प्रकाशवान हिस्से से मिला उसी वक्त उसकी तह जुदा होकर नीचे की तरफ गिर गई और वह हिस्सा भी रोशन हिस्से से मिलकर रोशन हो गया। फिर उस रोशन हिस्से से मौज यानी धार प्रकट हुई और नीचे उतरकर किसी कदर फासले पर ठहरी और वहां उसने उस देश के चैतन्य से तह या गालाफ को अलहदा करके नीचे की तरफ गिरा दिया और जो रोशन रूप बरामद हुआ उसको अपने रूप में मिला लिया।
और फिर उसका मंडल बढ़ता गया, यानी सब तरफ से गिलाफ वाला चैतन्य रोशन चैतन्य की तरफ खिंच कर और उससे मिलकर रोशन होता गया और इसी तरह उस मंडल में फिर कार्यवाही रचना की जारी हुई और जो गिलाफ कि ऊपर से उतर कर नीचे गिरा था उसके मसाले में से उस रचना की रूहों की देह बनाई गई।
जब उस मंडल की रचना हो गई और उस पर कुछ अरसा गुजर गया, तब उस मुकाम से पहले दस्तूर के मुआफिक नई धार या मौज प्रगट हुई और इसी तरह नीचे उतर कर किसी कदर फासले पर ठहरी, और वहां के गिलाफदार चैतन्य की तह हटाकर नीचे गिराया और नूरानी स्वरूप जो बरामद हुआ उसको अपने से मिलाकर बदस्तूर मंडल बांधा और रचना करी, यानी ऊपर से उतरे हुए गिलाफ या तह का जो मसाला था उससे इस मंडल की रूहों की देह तैयार करी और यही देह उनका गिलाफ होती गई।
यह दोनों मंडल अगम लोक और अलख लोक कहते हैं और इनके मालिक अगम पुरुष और अलख पुरुष है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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