रीछपति जाम्बवान कहते है,बूढा हो गया नही तो ये कोई बात नही थी।बामन अवतार के समय जब बालि बंधन हो रहा था तब मैंने इस धरती के सात प्रदीक्षण किये,तब युवा था।
अंगद कहने लगे जाने को तो चला जाऊंगा पर लौटने में संदेह है।जाम्बवान ने कहा आप सब कुछ कर सकते हैं,पर आप नायक हैं,आपको हम भेज भी नही सकते।
ये सब हो रहा थातब हनुमानजी एक कोने में बैठे हुए थे। उनको देख पूर्ब ब्रित्तान्त याद कर जाम्बवान कहने लगे--
*कहइ रीछपति सुनु हनुमाना का चुप साधि रहेउ बलवाना*
*पवन तनय बल पवन समाना,बुधि विवेक बिज्ञान निधाना*
जाम्बवान ने कहा सुनो हनुमान क्यों चुप साध के बैठे हो?तुम तो पवन के पुत्र हो और पवन के समान तुममे बल है।बल तो है ही,बुद्धि ,विवेक में भी तुम अद्वितीय हो,इसके निधान हो।
और इतना ही नही आप एकादस रुद्र साक्षात भगवान शिव के अवतार हो,सूर्य के शिष्य हो। आठो सिद्धियों निधियों के युक्त हैं आप।और श्री रामकाज को लगा के ही आपने अवतार लिया है
*काज सो कवन कठिन जग माही,जो नहि होइ तात तुम पाही*
संसार मे ऐसा कौन सा कार्य है जो तुमसे नही हो सकता!
इतना सुनना था कि ---
*सुनतहि भयउ पर्वताकारा*
पर्वत के आकार के हो गए।
*कनक बरन तन तेज बिराजा,मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा*
स्वर्ण सरीखा शरीर लगता था पर्वतराज सुमेरु हो।
*सिंहनाद करि बारहि बारा,लीलहि लाघउ जलनिधि खारा*
सिंहनाद कर बोले अरे मैं इस खारे सागर को तो खेल खेल में ही लांघ जाऊंगा।
रावण को सेना समेत मार कर पूरा त्रिकूट उखाड़ लाऊ,हे जाम्बवान!मैं तुमसे पूछता हूँ,उचित सिखावन दो,मैं क्या करूँ?
जाम्बवान ने कहा तात!आप वहां जाकर सीता जी का पता लगा कर आ जाओ,फिर श्री रामजी के साथ हम सभी चलेगे,और रावण को मार कर देवी सीता को वापस लाएंगे जिसे नारद आदि गायेंगे। भक्त उसे सुन कर भवनिधि पार करेगे।
ऐसा सुन हनुमानजी प्रस्थान कर गए,जाते समय बोले मेरा मन हर्षित हो रहा है,मैं रामकाज करके जल्दी ही लौटता हूँ। तब तक आप लोग यही मेरा इंतजार करना।
मित्रो ,किष्किंधा कांड यही बिश्राम लेता है। अगले अंक से हनुमत चरित सुंदरकांड को हमलोग पढेंगे।
*जय जय सियाराम*
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