**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【संसार चक्र 】
-कल से आगे :-
बाँदी -श्री महाराज! महारानी जी ने कहलाया है के अँगूठी वाले नौजवान की पूरी खातिर की जावे और राजपंडित से दरख्वास्त की जाय कि राजकुमार का अमृतलाल ही नाम रक्खा जाय। महारानी जी अँगूठी देख कर बड़ी ही प्रसन्न हुई।
( हंस पड़ती है और वापस चली जाती है।)
राजपंडित- भाई हम तो आगे ही कह रहे थे राजकुमारों के लायक नाम है ।
दीवान साहब -श्री महाराज ! अगर आज्ञा हो तो मैं कुछ अर्ज करूँ।
दुलारेलाल- हाँ हाँ कहिये।
दीवान साहब- अभी बुढिया कहती थी कि स्त्री का दिल संतान के लिए बहुत तड़पता है ।ये लोग अमृतलाल को गोद क्यों न लें लें? इसको मां-बाप मिल जायँगे और उनको पली पलाई संतान ।
दुलारेलाल- बहुत खूब ! मैं भी यही सोच रहा था।
( गले से सोने का कण्ठा उतार कर)
यह लो अमृतलाल! इसे पहनो तुलसी बाबा और उनकी धर्मपत्नी को नमस्कार करो । ये तुम्हारे ताऊजी और ताईजी थे, आज से तुम्हारे पिता और माता हुए।
( बाँदी एक थाल मिठाई का लेकर आती है।)
बाँदी- श्री महाराजा ! यह थाल महारानी जी ने अँगूठी वाले के लिये भेजा है।
दुलारेलाल (नौजवान से) लो भाई लो, मिठाई की कसर थी, वह भी पूरी हो गई। खिलाओ सबको मिठाई ।अपने हाथ से बाँटो।
नौजवान-हुजूर! क्या मैं स्वपन देख रहा हूँ?
दुलारेलाल- नहीं तुम जाग रहे हो, तुम संसार-चक्र का तमाशा देख रहे हो ।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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