**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग-1-
कल से आगे-( 3 )
इसी तरह अलख लोक से धार उतर कर नीचे आई और सत्तपुरुष रुप होकर सत्तलोक रचा और फिर उस लोक में रचना करी। यह तीनों मुकाम और उनकी रचना उस हिस्से अनामी पुरुष में रची गई कि जो सदा प्रकाशवान् और निर्मल चेतन के करीब नीचे था और जहां की तय बहुत बारीक थी, जैसे कि संतरे की फाँक के जीरे का गिलाफ होता है।
और वह तह या गिलाफ और उसका मसाला भी ऐन नूरानी अंग के स्वरूप था, यानी अनामी पुरुष के नूरानी अंग के रूप स्वरूप में और उस तह के रूप में बहुत कम भेद या फर्क था यानी वह भी वहां के नूरानी चैतन्य के मुआफिक नूरानी थी और इसी सबब से उस चैतन्य का गिलाफ होकर रही। और जब रुहों की जुदा-जुदा रचना हुई, तब उसी तह या गिलाफ के मसाले से उन रुहों की चैतन्य यानी रुहानी खोल या देह तैयार हुई।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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