**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 संसार चक्र】-
कल से आगे-
(इतने में बाँदी दाखिल होती है।)
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बाँदी- श्री महाराज की जय हो! भगवान् ने राजकुमार भेजा है ,मुबारक हो।
(सब लोग मुबारकबाद देते हैं। राजा दुलारेलाल आंखें बंद कर लेता है और कुछ देर बाद नौजवान को बुलवाता है। नौजवान हाजिर होता है।)
दुलारेलाल- आओ भाई आओ, हमारी जान के बचाने वाले, आओ हमारे नजदीक बैठो।
दीवान साहब -श्री महाराज! यह कौन है?
दुलारेलाल -यह वही नौजवान है जिसने कुरुक्षेत्र में हमारी जान बचाई थी। महारानी जी इसे यह अंगूठी यादगार के तौर पर दया आई थी।
(मुसाहिबीन से मुखातिब होकर) देखो! इस नौजवान को अच्छे कमरे में ठहराओ और खूब खातिर करो।
एक मुसाहिब- उठो भाई! बड़े भाग्यवान् हो, अच्छे वक्त आये।
नौजवान- महाराज! अगर मुझे इस वक्त महारानी जी के दर्शन नहीं हो सकते तो यह अंगूठी उन तक पहुंचा दी जाय।
दुलारेलाल- अच्छा। लो बाँदी,यह अँगूठी महारानी जी
को दिखलाओ और कहो अँगूठी लाने वाले की खातिर की जा रही है, इत्मीनान रक्खें।
( बांदी अंगूठी लेकर जाती है और लौटकर आती है।)
बाँदी-महारानी जी पूछती हैं इस नौजवान का नाम क्या है?
नौजवान -मेरा नाम अमृतलाल है।
(बाँदी नाम सुन कर अंदर जाती है ।,हाजरीन,खासकर तुलसी बाबा। और बुढिया, अमृतलाल की तरफ गौर से देखते हैं।)
राजपंडित- नाम तो बड़ा सुंदर है, राजकुमारों का सा है।
तुलसी बाबा -(नौजवान से) अरे भाई तुम्हारे बाप का क्या नाम है?
नौजवान- मेरे बाप का नाम गंगादास था।
दुलारेलाल- हैं! तुम्हारे बाप को क्या हुआ ?
नौजवान -हुजूर को याद होगा- उन ठगो की टोली का एक आदमी बच गया था वह उनका सरदार था। 15 दिन हुए उसने दाव पाकर मेरे बाप को मार डाला । क्रियाक्रम कराते ही अपनी जान बचाने के लिए यहां भाग आया हूँ, हुजूर शरण में लें।
दुलारेलाल- तुम यहाँ कतई बेफिक्र हो कर रहो।
तुलसी बाबा -श्री महाराज। यह तो हमारा भतीजा है ।
बुढिया-अरे मेरे अमृत मेरे कलेजे लग जा । मैं भी कहूँ शक्ल तो मेरे देवर की किसी है ।
दुलारेलाल - आप लोगों ने इसे अच्छी तरह पहचान लिया ? मैंने इन लोगों का पेद्दापुरम में जिक्र किया था न?
तुलसी बाबा- हाँ महाराज, मुझे खुद याद है।
क्रमश:
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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