Saturday, July 18, 2020

प्रेमपत्र संसारचक्र औऱ रोजाना वाक्यात



**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग 1-

 कल से आगे:-( 2)

जिस वक्त की अनामी पुरुष का यह स्वरूप था, उस वक्त जो उसका के नूरानी हिस्से से नीचे निहायत बारिक तह से ढका हुआ था, उसकी कशिश नूरानी हिस्से की तरफ जा रही थी जैसे जब किसी बर्तन में घी भरकर ऊपर का हिस्सा उसका रोशन कर दिया जावे तो उसके नीचे के घी की दौड़ रोशन घी की तरफ होती है और उस नीचे के हिस्से के घी की तह या गिलाफ धुआँ रुप होकर जुदा हो जाता है।

 ऐसे ही जो नीचे का हिस्सा कि रोशन और प्रकाशवान हिस्से से मिला उसी वक्त उसकी तह जुदा होकर नीचे की तरफ गिर गई और वह हिस्सा भी रोशन हिस्से से मिलकर रोशन हो गया। फिर उस रोशन हिस्से से मौज यानी धार प्रकट हुई और नीचे उतरकर किसी कदर फासले पर ठहरी और वहां उसने उस देश के चैतन्य से तह या गालाफ को अलहदा करके नीचे की तरफ गिरा दिया और जो रोशन रूप बरामद हुआ उसको अपने रूप में मिला लिया।

और फिर उसका मंडल बढ़ता गया, यानी सब तरफ से गिलाफ वाला चैतन्य रोशन चैतन्य की तरफ खिंच कर और उससे मिलकर रोशन होता गया और इसी तरह उस मंडल में फिर कार्यवाही रचना की जारी हुई और जो गिलाफ कि ऊपर से उतर कर नीचे गिरा था उसके मसाले में से उस रचना की रूहों की देह बनाई गई।

जब उस मंडल की रचना हो गई और उस पर कुछ अरसा गुजर गया, तब उस मुकाम से पहले दस्तूर के मुआफिक नई धार या मौज प्रगट हुई और इसी तरह नीचे उतर कर किसी कदर फासले पर ठहरी, और वहां के गिलाफदार चैतन्य की तह हटाकर नीचे गिराया और नूरानी स्वरूप जो बरामद हुआ उसको अपने से मिलाकर बदस्तूर मंडल बांधा और रचना करी, यानी ऊपर से उतरे हुए गिलाफ या तह का जो मसाला था उससे इस मंडल की रूहों की देह तैयार करी और यही देह उनका गिलाफ होती गई।

यह दोनों मंडल अगम लोक और अलख लोक कहते हैं और इनके मालिक अगम पुरुष और अलख पुरुष है।

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


*
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

- रोजाना वाक्यात- कल से आगे:-

 एक तस्नीफ से हरबर्ट स्पेंसर के कुछ कलाम पढ़ने का इतिहास हुआ जिनका आश्य हह्बजैल है:-

साइंस को चाहिए कि फौरन तस्लीम कर ले कि उसके नियमों की पहुंच महज नजर आने वाले संसार तक है और मजहब को चाहिए कि फौरन मान ले कि उसकी थियोलॉजी ऐसे आस्थाओं को समझाने के योग्य बनाने के लिए मनगढ़ंत है जो अकल की पहुंच से परे है और भी मजहब के लिए मुनासिब है कि ईश्वर का बयान करते वक्त यह दिखलाने की कोशिश ना करें कि वह महज एक ऊंचे स्तर का इंसान है या जालिम खूँखार धोखेबाज देव है और जिसे आत्म प्रशंसा से ऐसी जबरदस्त प्रेम है कि अगर किसी इंसान के दिल में हो तो वह काबिले नफरत होती है।

और साइंस के लिए मुनासिब है कि खुदा की हस्ती से इनकार करना छोड़ दें और भौतिकवाद में ख्वामख्वाह एतकाद न लावे। मन और माद्या क्या है ? किसी एक ऐसे तत्व की दो शक्लें हैं इसकी हकीकत जानने में इंसान हमेशा असमर्थ रहेगा । उसी जोहर को मजहब खुदा के नाम से नामित करता है।

यही जौहर मजहब की जान है। और यही फलसफा की शुरुआत है । मगर हुआ क्या?  हरबर्ट स्पेंसर का मशवरा न साइंस ने माना न मजहब ने । नतीजा यह है कि दोनों टकरा रहे हैं।

साइंस रोटी देता है और रोटी दिलाने का वादा करता है। मजहब भूखा है। आयंदा जिंदगी में आराम के सामान मुहैया करने का वादा करता है। इसलिए मजहब परेशान हाल है। यह जमाना नक्द सौदे का है। उधार के दिन जाते रहे।।                                             

गीता का उर्दू तर्जुमा आज प्रैस से आ गया। मुख्य पृष्ठ इच्छा अनुसार नहीं छपा। हालांकि प्रेस को सख्त ताकीद की गई थी। प्रैस सतसंग का नहीं है इसलिए मामला बेबसी का है। मैंनेजर साहब कहते होंगे "अजी हिंदुस्तानी ही तो है उनके लिए इससे अच्छा कोई क्या छापेगा?"   

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 संसार चक्र】

 कल से आगे:-

 दुलारेलाल -आज मेरे हृदय की ग्रंथियां खुल गई, मेरे संशय  निवृत हो गये,मुझे शांति आ गई। संसार, संसार है। इसकी लहरें उठा करें- हम अपनी तरफ से कोई ख्वाहिश ना उठाएंगे। जो होता है हो, नहीं होता न हो। जहां तक हो सकेगा अपने को और दूसरों को सुखी करेंगे। इसकी लहरों की झपट से बचने की कोशिश करेंगे और जो भी चपेट में आ जाएंगे तो वह भी एक तमाशा ही होगा। कहिए तुलसी बाबा! आप क्या कहते हैं?

 तुलसी बाबा- सत्य है, सत्य है। संसार चक्र जैसे चलता है चले । हम कौन होते हैं अपने बाँधनू बाँधने वाले? बाँधनू बांधने से ही कष्ट व निराशता होते हैं। संसार स्वप्न है तोस्वप्न ही सही, सत्य है तो सत्य सही, परंतु दिव्य चक्षु का विषय नया है। श्रीमद्भागवतगीता में इसका जिक्र आया है सो यह भी सत्य हैं।  जो जगत् के गोरखधंधे को सुलझाना चाहे वह दिव्य चक्षु की सुधि ले, नहीं तो जैसा श्रीमान ने समझाया अपना काम चलावे।

इंदुमती- बाबा जी! उस बेचारी बुढ़िया के लिए क्या करोगे ?

 तुलसी बाबा- अब यहाँ वहाँ एक समान है, आपके साथ भूमिगांव चलेंगे ।

(राजा साहब को मुखातिब करके )महाराज! मैं तो हमेशा से बुद्धिबिलास के खिलाफ रहा हूँ। जो आनंद हृदय की शुद्धता में है उसका कुछ वार पार पर नहीं है। शुद्ध हृदय के अंदर प्रेम लहर लहराने लगती है तो फिर उसका कहना ही क्या है -योग, ज्ञान ,वैराग्य सब फीके दरसते हैं । आज्ञा हो तो एक भजन गाया जाय।

 सब मिलकर- हाँ हाँ जरूर गाइये और खूब प्रेम में भर कर गाइये।। 

 ( गाना)                   

अरे मेरे बाप जी! ओ मेरे नाथ जी! मैं तुम चरन मस्ताना।।  चरन कहो चहे जग उजियारा, जिन पकड़े तीन मिटा अँध्यारा , हो गये वह निष्पाप जी!
ओ मेरे बाप जी मैं! नहीं भेज पहिचाना।।।
चरन पाय मम नैन खुलाने ,
 शांति हुई मन भर्म नसाने, और मिटे संताप जी!  अहो मेरे बाप जी! मैं रहूं उर माही छिपाना।।   मैं चरनन में रहूँ लिपटाई,  उमंग सहित नित बढ़ाई, जहां चरन तहाँ आपजी! अहो मेरे बाप जी! मैं उनपर सद कुरबाना।।


 दुलारेलाल - (राजासाहब से) श्रीमान जी! दिव्य चक्षु के बारे में भी कुछ फरमाइये, क्या मुझे भी दिव्य ज्ञान हो सकता है?

राजा साहब- जरूर हर किसी को ज्ञान हो सकता है । इसके बारे में कल बातचीत करेंगे, अब दूर से अब बहुत देर हो गई है।

(राजा साहब व तुलसी बाबा विदा होते हैं ।)

(ड्राप सीन)

क्रमशः


🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




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