उम्मीद का दीपक
प्रस्तुति - अशोक प्रियदर्शी
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एक घर में पांच दीए जल रहे थे। एक दिन पहले ने कहा- इतना जलने के बाद भी लोगों को मेरी रोशनी की कोई कदर नहीं, तो बेहतर होगा कि मैं बुझ जाऊं। वह स्वयं को व्यर्थ समझकर बुझ गया। जानते हैं वह दीया कौन था? वह दीया था 'उत्साह' का प्रतीक।
यह देख दूसरा दीया जो 'शांति' का प्रतीक था, ने कहा- अब तो मुझे भी बुझ जाना चाहिए। क्योंकि निरंतर 'शांति की रोशनी' देने के बावजूद लोग हिंसा कर रहे हैं और वह भी बुझ गया।
अब तीसरा दीया जो 'हिम्मत' का था, वह भी हिम्मत खो बैठा और बुझ गया।
इन तीनों के न रहने पर चौथे दीए ने भी बुझ जाना ही उचित समझा। इस प्रकार चौथा दीया जो 'समृद्धि' का प्रतीक था, वह भी बुझ गया। इन चारों के बुझने के बाद पांचवां दीया अकेला ही जल रहा था। हालांकि वह सबसे छोटा था।
तभी घर में एक लड़के 'आलोक' ने प्रवेश किया। उसने देखा कि घर में सिर्फ एक दीया जल रहा है। वह खुशी से झूम उठा।उसने पांचवां दीया उठाया और शेष चार को फिर से जला दिया। जानते हैं वह पांचवां दीया कौन था? वह था- 'उम्मीद का दीया'।
अतः घर में और मन में भी उम्मीद का दीया जलाए रखिए। चाहे चहुंओर के दीए बुझ जाएं, लेकिन 'उम्मीद का दीया' नहीं बुझना चाहिए। यह आपके जीवन को आलोकित कर देगा...
#एकांतऔषधिहै
#जयश्रीहरि
#जयसियाराम
#विश्वकाकल्याणहो
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