माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू क्यों?
प्राणी जगत की संरचना करने के बाद एक दिन सभी देवी-देवता धरती पर विचरण के लिए आए। जब पशु-पक्षियों ने देवी-देवताओ को पृथ्वी पर घुमते हुए देखा तो उन्हें ये अच्छा नहीं लगा और वह सभी एकत्रित होकर उनके पास गए और कहा आपके द्वारा उत्पन्न होने पर हम सभी धन्य हो गए हैं।
हम आपको धरती पर आप जहां भी चाहेंगे वहां ले चलेंगे। कृपया आप हमें अपने वाहन के रूप में चुनें ले और हमें कृतार्थ करें।
सभी देवी-देवताओं ने उनकी इस बात को मानकर उन्हें अपने वाहन के रूप में स्वीकार करना आरंभ कर दिया। जब लक्ष्मीजी की बारी आई तो वह असमंजस में पड़ गई की वह किस पशु-पक्षी को वाहन के रूप में चुने।
इसी बीच सभी पशु-पक्षियों में भी होड़ लग गई की वह लक्ष्मीजी के वाहन बनें। लक्ष्मीजी भी सोच विचार कर रही थी तभी पशु पक्षियों में लड़ाई होने लगी।
और लक्ष्मी जी ने कहा कि प्रत्येक वर्ष की कार्तिक अमावस्या के दिन मैं विचरण करने पृथ्वी पर आती हूं। उसी दिन मैं आप सब में से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी। और कार्तिक अमावस्या के दिन सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मीजी को निहारने लगे।
रात्रि के समय में जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर उपस्थित हुई तो उल्लू ने अंधेरे में भी अपनी तेज नजरों से उन्हें देख लिया और तेज गति से उनके निकट पंहुच गया और लक्ष्मीजी से प्रार्थना करने लगा की आप मुझे ही अपना वाहन स्वीकार करे।
लक्ष्मीजी ने चारों तरफ देखा तो उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया। तो फिर उन्होंने उल्लू को ही अपना वाहन स्वीकार कर लिया। उसी समय से उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है।
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