**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- कल से आगे-( 9)
अब समझना चाहिए कि सहसदलकँवल के नीचे परगट कार्यवाही तीन धारों की है।।
पहली चैतन्य धार जो सत्तपुरुष राधास्वामी की अंश है और यहां अनेक जिस्मों में जीव चैतन्य या सुरत कहलाती है और कारफरमा यानी कर्ता है यही है।।
दूसरी निरंजन यानी काल पुरुष की धार जो मन रुप होकर हर एक जिस्म सुरत की ताकत से कार्यवाही करती है ।।
तीसरी माया की धार, जो देह और इंद्री रूप होकर सुरत और मन का गिलाफ हो रही है। नीचे के देश में माया के तहत और उसका मसाला (जो 3 गुण और पांच तत्वों में ) स्थूल और ज्यादा स्कूल यानी मलीन से मलिन होता गया और इसी सबब से इन देशो में भी निहायत स्थूल और मलीन है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
No comments:
Post a Comment