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*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात- कल से आगे:-
एक तस्नीफ से हरबर्ट स्पेंसर के कुछ कलाम पढ़ने का इतिहास हुआ जिनका आश्य हह्बजैल है:-
साइंस को चाहिए कि फौरन तस्लीम कर ले कि उसके नियमों की पहुंच महज नजर आने वाले संसार तक है और मजहब को चाहिए कि फौरन मान ले कि उसकी थियोलॉजी ऐसे आस्थाओं को समझाने के योग्य बनाने के लिए मनगढ़ंत है जो अकल की पहुंच से परे है और भी मजहब के लिए मुनासिब है कि ईश्वर का बयान करते वक्त यह दिखलाने की कोशिश ना करें कि वह महज एक ऊंचे स्तर का इंसान है या जालिम खूँखार धोखेबाज देव है और जिसे आत्म प्रशंसा से ऐसी जबरदस्त प्रेम है कि अगर किसी इंसान के दिल में हो तो वह काबिले नफरत होती है।
और साइंस के लिए मुनासिब है कि खुदा की हस्ती से इनकार करना छोड़ दें और भौतिकवाद में ख्वामख्वाह एतकाद न लावे। मन और माद्या क्या है ? किसी एक ऐसे तत्व की दो शक्लें हैं इसकी हकीकत जानने में इंसान हमेशा असमर्थ रहेगा । उसी जोहर को मजहब खुदा के नाम से नामित करता है।
यही जौहर मजहब की जान है। और यही फलसफा की शुरुआत है । मगर हुआ क्या? हरबर्ट स्पेंसर का मशवरा न साइंस ने माना न मजहब ने । नतीजा यह है कि दोनों टकरा रहे हैं।
साइंस रोटी देता है और रोटी दिलाने का वादा करता है। मजहब भूखा है। आयंदा जिंदगी में आराम के सामान मुहैया करने का वादा करता है। इसलिए मजहब परेशान हाल है। यह जमाना नक्द सौदे का है। उधार के दिन जाते रहे।।
गीता का उर्दू तर्जुमा आज प्रैस से आ गया। मुख्य पृष्ठ इच्छा अनुसार नहीं छपा। हालांकि प्रेस को सख्त ताकीद की गई थी। प्रैस सतसंग का नहीं है इसलिए मामला बेबसी का है। मैंनेजर साहब कहते होंगे "अजी हिंदुस्तानी ही तो है उनके लिए इससे अच्छा कोई क्या छापेगा?"
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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