**राधास्वामी!! 30-07-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) दिवाला पूजें जीव अजान। भरमते फिरते चारों खान।।-( जुए में नर देही हारी।देत जम धिरकारी भारी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-2 ●दिवाली● पृ सं.324)
(2) कौन सके गुन गाय तुम्हारे। कौन सके गुन गाये जी।।टेक।। कामी क्रोधी लोभी हमसे। चरनन आन मिलाये जी।।-( राधास्वामी दयाल चरन की।महिमा निस दिन गाये जी।।) (प्रेमबिलास-शब्द-24-पृ.सं.29)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 30-07-2020 -
कल से आगे-( 61 )
परंतु प्रश्न होता है कि स्वामीजी ने मुक्ति के संबंध में यह नई बात क्यों निकाली जबकि श्री नरदेव शास्त्री के कथनअनुसार वेदों में कोई ऐसा प्रमाण विद्यमान नहीं है जो स्पष्ट रूप से इस विचार का समर्थक हो। इसका उत्तर इन पंक्तियों के लेखक के विचार में यह है कि न तो स्वामीजी को मुक्ति अवस्था का अनुभव था , ना ही मुक्ति की विशेष इच्छा थी ।
वे सच्चे देशभक्त थे, वे दूसरे कर्मकांड के श्रद्धालुओं के समान इस जगत् को सत्य मानते थे और यहाँ के पद- परिजन, जीवन तथा सुख-समृद्धि को अतीव महत्व देते थे। साथ ही उनको अनुभव से ज्ञात था कि भारतवासी मुक्ति के लिए आसक्त होकर संसार के संग्राम से उदासीन तथा दीन हीन हो रहे हैं । यदि उन्हें स्वयं मुक्ति की अवस्था का अनुभव होता तो इन सब बातों के होते हुए भी वे मुक्ति से पुनरावृत्ति आवृत्ति के सिद्धांत का प्रचार न करते और यदि उन्हें मुक्ति की अभिलाषा होती तो जिज्ञासु की तरह दूसरे धार्मिक नेताओं से उसकी पूछताछ करते। भारतवर्ष की दुर्दशा देख करके और उसके लिए मिथ्या धार्मिक शिक्षा को उत्तदायी ठहरा कर उन्होंने तत्कालीन धार्मिक विचारों पर दायें बायें और आगे पीछे कुठाराघात आरंभ किया इस आवेग में एक कठोर आघात मुक्ति के सिद्धांत पर भी आ पड़ा।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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