**परम गुरु )oo हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग-1-
कल से आगे-( 3 )
इसी तरह अलख लोक से धार उतर कर नीचे आई और सत्तपुरुष रुप होकर सत्तलोक रचा और फिर उस लोक में रचना करी। यह तीनों मुकाम और उनकी रचना उस हिस्से अनामी पुरुष में रची गई कि जो सदा प्रकाशवान् और निर्मल चेतन के करीब नीचे था और जहां की तय बहुत बारीक थी, जैसे कि संतरे की फाँक के जीरे का गिलाफ होता है।
और वह तह या गिलाफ और उसका मसाला भी ऐन नूरानी अंग के स्वरूप था, यानी अनामी पुरुष के नूरानी अंग के रूप स्वरूप में और उस तह के रूप में बहुत कम भेद या फर्क था यानी वह भी वहां के नूरानी चैतन्य के मुआफिक नूरानी थी और इसी सबब से उस चैतन्य का गिलाफ होकर रही। और जब रुहों की जुदा-जुदा रचना हुई, तब उसी तह या गिलाफ के मसाले से उन रुहों की चैतन्य यानी रुहानी खोल या देह तैयार हुई।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराl
-【संसार चक्र】
( चौथा अंक)-
पहला दृश्य:-
(भूमि गांव के स्टेशन पर लोगों की भीड़ जमा है। राजा दुलारेलाल के आने की खबर है । दीवान साहब और राजपंडित भी मौजूद है। रेल आती है। राजा दुलारेलाल व इंदुमती गाड़ी से उतरते है।)
राज पंडित-( चिल्लाकर ) राजा दुलारेलाल की जय!
( सब लोग 'जय' पुकारते है।)
दीवान साहब -श्री महाराज! आज का दिन बड़ा ही मुबारक है।
राज पंडित- जैसे बछडे गौओं से मिलकर सुखी होते हैं, इसी प्रकार श्री महाराज की प्रजा आज खुश हो रही है।
( दुलारेलाल और इंदुमती लोगों को हाथ जोड़ते हैं। सब जय जय पुकारते है। राजपंडित पहले राजा दुलारेलाल और रानी इंदुमती को फूलों के हार पहनाते हैं। बाजा बजता है और जुलूस तैयार होकर सब लोग शहर की तरफ चलते हैं । दुलारेलाल व इंदुमति एक गाड़ी में सवार हैं।)
एक आदमी -अरे! अब तो राजा साहब पहिचाने ही नही जाते।
दूसरा आदमी- साल भर बाहर रहने से दोनों की शक्लें ही बदल गई।
तीसरा आदमी-पर चेहरों पर शांति बरसती है ।
पहला आदमी-तीर्थ यात्रा अगर शुद्द भाव की जाए तो अपना फल देती ही है।
दूसरा आदमी -अच्छा हुआ साल भर बाहर रह आये, नहीं तो बच्चे के मरने का दुख खा लेता।
चौथा आदमी- सुना है पहले कुरुक्षेत्र गये, फिर गोदावरी और समय काशी, प्रयाग सभी तीर्थ कर आये।
दूसरा आदमी- उम्मीद है अब राजा साहब की पुरानी आदतें छूट गई होंगी।
पहला आदमी- जब किसी पर ईश्वर की कृपा होती है तो उसके काँटो के फूल बना देता है। तुमने देखा रानी जी को ?
मुझे तो उनका पैर भारी मालूम होता है।
दूसरा आदमी-मालूम तो होता है, और ईशवर की कृपा हुई तो जल्द ही कोई खुशखबरी सुनने में आवेगी।(
चौक बाजार में पहुँच कर जलूस खडा हो जाता है । लोग छतों से फूल बरसाते हैं। कुछ लड़कियाँ आगे बढ़ती हैं । दो लड़कियों के हाथ में फूलों की मालाएँ हैं। लड़कियां गाड़ी के सामने आकर खड़ी हो जाती है गाती हैं।)
धन्य घडी है आज, धन्य यह समय सुहाये।
महारानी महाराज दोऊ तीरथ कर आये।
नर-नारी सुरसाज उमँगअंग देहिं बधाई।
जुग-जुग रहे तुम राज और हो जोति सवाई।।
( इसके बाद लड़कियां दुलारेलाल और इंदुमती को हार पहनाती हैं। दुलारेलाल गाडी में खड़े होकर शुक्रिया अदा करते हैं।)
दुलारेलाल- भूमिगाँव-निवासियो! आपका दास और इंदुमती आपके इस प्रेम के लिए धन्यवाद पेश करते हैं। तीर्थ यात्रा से हमारे जीवन में बड़ा परिवर्तन हो गया है ।अगर आपकी कृपा शामिलेहाल रही तो बा उम्र हम दोनों आपकी दिल खोल कर सेवा करेंगे।
( राजा दुलारेलाल हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है ।)
लोग-राजा दुलारेलाल की जय रानी इंदुमती की जय !(जलूस आगे बढ़ता है। )
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत-
कल से आगे- 3 दिसंबर 1932- शनिवार-
जलसा के दिनों के लिए प्रोग्राम तय हो गया। और प्रकाशन के लिए दफ्तर प्रेम प्रचारक भेज दिया गया। 1 दिन शुकराना के लिए रखा गया है ,1 दिन ब्रांच सत्संगों के सेक्रेटरियों के जलसे के लिए और एक दिन आम सत्संगियों के जलसे के लिए है।
ताकि हर किसी को अपने दिल के ख्यालात के इजहार का मौका मिल जाये। 27, 28, 29 को यानी 3 दिन भंडारा रहेगा। 29 की सुबह को सभा का सालाना जलसा आयोजित होगा। भंडारों के दिन दस हजार मर्द व औरतों का बिला विचार जात व भिन्नता दर्जा एक जा बैठकर खाना दुनिया का जवान हाल से पुकार कर सुना देगा कि जात पाँत का भूत दयालबाग के अंदर नहीं घुस सकता।।
आज गीता के तर्जुमें की कुछ कापियाँ उन भाइयों मे तक्सीम की जिन्होंने उसकी तैयारी में मदद दी थी। सबसे अव्वल कॉपी मेहता ऊधो दास साहब रिटायर्ड चीफ जज बहावलपुर को दी गई । वह कल ही दयालबाग आए हैं। यह गीता के बड़े प्रेमी है। तर्जुमा तैयार करके मैंने पांडुलिपि आपके हवाले कर दिया था। उन्होंने पढ़कर अनेक लाभकारी मशवरे दिये। उसके बाद तर्जुमा प्रेमी भाई बिहारी दास एम. ए. के हवाले किया गया।
उन्होंने भी खूब छानबीन की। उसके बाद मैंने खुद 1-1 श्लोक के तर्जुमें की गौर से जांच की और दो-चार प्रमाणित तर्जुमों से मुकाबला किया। अर्थात अपनी तरफ से तो सही बनाने में पूरी कोशिश की।
मेहता साहब तर्जुमा को मौजूदा पॉलिश्ड शक्ल में देखकर बहुत खुश हुए । मेहता साहब ने नुस्खे के उन सब मकामात पर निशानात लगा दिये जहां मेरा तर्जुमा भ्रमआत्मक या अपूर्ण था। बिहारी दास साहब ने उन सब मकामात पर निशानात लगा दिए जहां मेरा तर्जुमा मुस्तनद टीकाकारों से मुख्तलिफ था। नामुकम्मल या मौहूम तर्जुमें को दुरुस्त करना फर्ज था लेकिन दूसरे टीकाकारों से सहमत होना मुझे अपना फर्ज महसूस नहीं हुआ।
इसलिए मेरे तर्जुमा में दूसरों से जगह-जगह भिन्नताएं हैं । वह लोग समझते हैं कि मेरे मानी दुरुस्त है मेरा मन कहता है कि मेरे मानी दुरुस्त है। फैसला व्यास जी ही कर सकते हैं।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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