**राधास्वामी!!
21-07-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) सोई तो सुरत पिया की प्यारी। जो भींज रही गुरु सँग सारी।।-( राधास्वामी दीन दयाला। गोद लिया मोहि बैठा री।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-27,पृ.सं. 315)
(2) चहुँ दिस आग लगी, जग जीव बिचारे, करमों के मारे, रहे जग धार बहाई रेः राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी प्यारे राधास्वामी रे।। -( औगुन अपने भूला, चित बहु बिधी फूला, मान बडाई झूला, तुम दिया बिसराई रे। राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी प्यारे राधास्वामी रे।।) (प्रेमबिलास-शब्द-16,पृ.सं.20)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे- 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
21-07 -2020 -
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 56)
पर स्वामी जी की युक्तियाँ अत्यंत निर्बल है। मुक्ति की जो परिभाषा उन्होंने दी है पहले थोड़ा उस पर ध्यान दीजिये। सत्यार्थप्रकाश में आया है --
"जिसमें छूट जाना हो उसका नाम मुक्ति है। (प्रश्न) किससे छूट जाना?
( उत्तर ) -दुख से।
(प्रश्न ) छूटकर किसको प्राप्त होते और कहां रहते हैं?
( उत्तर ) सुख को प्राप्त होते हैं और ब्रह्म में रहते हैं"
( पृष्ठ 248 तेरहवाँ हिंदी एडिशन )। अर्थात स्वामीजी के मत में मुक्ति का अर्थ दुःख से छूट जाना, सुख को प्राप्त होना और ब्रह्म में रहना है। अब यदि मुक्ति पाकर जीवो को ब्रह्म में रहना है तो उनकी तीसरी युक्ति रद्द हो जाती है क्योंकि ब्राह्म तो अनंत और अपार है, उसमें भीड़ भड़क्का होने का भय व्यर्थ ही है। यदि आठवीं युक्ति के अनुसार ब्रह्म में लय होना डूब मरना ही है तो जो मुक्ति की अवधि आपने नियत की है उतने काल की मुक्ति पाना भी उतने काल के लिए डूब जाना ही होगा और मुक्ति की परिभाषा " दुख से छूट जाना , सुख को प्राप्त होना" निरर्थक सिद्ध होगी । और जब लोगों को मालूम हो गया कि मुक्ति का अर्थ डूब जाना है तो ऐसा कौन मनुष्य होगा जो मुक्ति के लिए इच्छा करेगा?
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग पहला-
परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**.
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