**राधास्वामी!!
02-08-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) बिन सतगुरु की भक्ति, जनम बिरथा नर नारी। गुरु ज्ञान बिना संसार, अधेरा भारी।।टेक।।-( बिन गुरु कैसे लगे, सुरत की घट में तारी। बिध सतगुरु की भक्ति जनम बिरथा नर नारी।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-4 लावनी-पृ.सं.327)
(2) मेरे दरद उठे हिये माहिं दरश कैसे पाऊँ री।।टेक।। हाथ जोड नित बिनती लाऊँ।औगुन देख लजाऊँ री।।-(नाम मिला परशादी पाई। सतगुरू के गुन गाऊँ री।।) (प्रेमबिलास-शब्द-26-पृ.सं.32)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
02-08- 2020 -
कल से आगे-( 64)
आक्षेपकों का यह कथन बहुत ठीक और मानने योग्य है कि केवल माँगने ही से किसी को मुक्ति नहीं मिल जाती , उसकी प्राप्ति के लिए उचित यत्न भी होना चाहिए। पर उन्हें स्मरन रखना चाहिए कि मुक्ति के प्राप्ति के लिए चाह उठाना और प्रार्थना करना एक यत्न ही है।
मनुष्य की आत्मा जगत के भोगों की आशा से संसार में जन्मती है और मरती है इसलिए प्रत्येक मुक्ति के अभिलाषी के लिए आवश्यक है कि जगत के भोगों की आशा चित्त से दूर करें। राधास्वामी-मत इसके लिए अंतरी और बाहरी साधन बतलाता है- सुमिरन, ध्यान और भजन अंतरी साधन है।
सेवा और सत्संग बाहरी साधन है । जो व्यक्ति सच्चे ह्रदय से इन साधनों की कमाई करता हुआ मुक्ति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है और इच्छा उठाता है वह अवश्य एक दिन अपने संकल्प में सफल होगा, किंतु जो लोग न सेवा और सत्संग की महिमा जानते हैं, न सुमिरन, ध्यान और भजन की युक्तियों का आदर करते हैं उन्हें सतसंगियों का मालिक के दर्शन की चाह उठाना अनुचित या व्यर्थ दीखता है।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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