कबिरा हंसना भूल जा, रोने से कर प्रीत।
बिनु रोये कब पाइयाँ, प्रेम पियारा मीत।।
कौन है तू कहां से आया, चला कौन से पंथ ।
अपने को तू आप न जाना, पढ़ि - पढ़ि कोटिन ग्रंथ ।।
मेरे प्रेमी भाईयों! तरीक़त एक राज़ है । इसी तरीक़त को उपासना कहते हैं । उपासना का मतलब होता है गुरू के समीप बैठना । बराबर में नहीं बैठना, नीचे बैठना । इस समीप बैठना से यह मतलब नहीं कि समीप या करीब बैठे हैं तो वहीं बैठे रहें । करीब से करीबतर होते जाने का नाम उपासना या तरीक़त है।
इसको ऐसे समझिए कि आप के दोनों हाथों में, तमाम जेबों में जरूरी और ग़ैर जरूरी सामान हैं और आपके हाथ बिल्कुल खाली नहीं कि आप कोई दूसरा सामान पकड़ सकें या उठा के जेब में रख सकें । मान लिया कि हमें रास्ते में दो हीरों और लालों की थैलियों की शक्ल में बेवहा दौलत पड़ी दीख गई । अब हमारा मन या दिल क्या चाहेगा? यही न कि जो असबाब हमारे हाथ में हैं वह भी हमारे हाथ में रहें और यह बेशकीमती दौलत भी हमारी हो जाए । अब मुश्किल आ खड़ी हुई कि किसको पकड़ें और किसको छोड़ें ।
गुरू क्या करता है? बस वह समझ देता है कि हमारे हाथ में जो जिन्दगी के लिए जरूरी असबाब हैं वह हमारे पास बाकी बचें और जो हमने फालतू के बोझ उठा रखे हैं , उन बोझों को उतार फेंके और बेवहा दौलत को समेट लें ।
इस छोड़ने और पकड़ने में ही मोह और अहंकार अपना तमाशा कर जाते हैं और हम ग़ैरजरूरी बोझ तले कुचल जाते हैं और बेशकीमती दौलत जो हमारी हो सकती है, उसे खो देते हैं । यह तरीक़त या उपासना ही है कि हम संतों और फक़ीरों की सोहबत से फैज़याब होते हैं ।
ऐ लोगों! कि वक़्ते आखीर में कोई तौबा क़बूल नहीं होती । तौबा और निदामत का वक़्त आज ही है । अपनी मगरूरियों से बाज आओ । अपनी करतूतों पर शर्मिन्दा होओ । तौबा करो और मुकम्मल तौर पर अपने को उसके हाथों में सौंप दो । खुदसुपुर्दगी ही तमाम दवाओं और दुवाओं का सारतत्त्व है ।
वह मालिके कुल है, अपने को छोड़ दो उसके हाथों में और तौबा करो फहस और बेहूदे कामों को करने से कि इस मुश्किल वक़्त में वही सहारा है ।
अपने पढ़ने और इल्म पर तथा दलील बाजी पर बहुत गरूर न करो। कि इनकी औकात महज दो कौड़ी की भी नहीं । यकीन न हो तो तो किसी मरने वाले से पूछ लो । अगर इल्म है तो रोशनी भी होगी ही ।
गर्क़ करदे मौज़े गंगा में तू सारी पोथियाँ
सिर्फ दिल के हाथ में आने का तू अरमान कर ।
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मालिक दयालु दया करे
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अदना गुलाम गुलाब शाह क़ादरी
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