Monday, August 17, 2020

रोजाना वाक्यसत

  **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -रोजाना वाकिआत- 21 दिसंबर 1932 -बुधवार

 -कल रात को दयालबाग की जनगणना की गई । कुल मर्दों, औरतों व बच्चों की तादाद 3992 बयान में निकली। आज दिन में मोगा, फिरोजपुर, अमृतसर और भीमावरम, तिरुनेलवेली वगैरह मकामात से बहुत से सत्संगी आये।।                                    कोलकाता से सूचना प्राप्त हुई की डेरी के लिये अमेरिका से जो गाय व सांड मंगाये गये हैं आज जहाज से उतरेंगे और 23 दिसंबर को दयालबाग पहुंचेंगे। और भी लखनऊ से खबर आई कि पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की फिल्में और वैन 26 दिसंबर को यहां पहुँचेंगी और 31 दिसंबर तक यहाँ नुमाइश की जायेगी।।                                                          तीसरे पहर भंडार घर का हाल देखा । बीसों स्त्रियां रोटी पकाने में संलग्न है। बिना प्रतिफल पर काम कर रही है । एक सेट पंजाबी  देहाती स्त्रियों का था। जिस शौक से यह स्त्रियाँ चुपचाप काम कर रही थी काबिले तारीफ है। यह अपने काम में इतनी सलंग्न थी कि उन्हें बहुत देर तक मेरे आने की खबर तक न हुई।  ए सत्संग की सुपुत्रियों!  राधास्वामी संगत को ऐसे ही काम करने वालों की जरूरत है।  ऐसे काम करने वालों ही के प्रताप से जनता के पेट भरने हैं! कॉरेस्पोंडेंस के वक्त बयान हुआ कि ढुलमुल यकीन होना परमार्थ में एक किस्म की बीमारी है । परमार्थ में स्थिर बुद्धि और सही ईमान ही कदम बढ़ा सकते हैं। जो लोग अपने तई बढ़कर काबिल समझते हैं और नामवरी के दिलोंजान से ख्वाहिशमंद होते हैं मगर समझबूझ बहुत अदना रखते हैं वही ढुलमुल यकीन हुआ करते हैं।।                          रात के सत्संग में जिक्र हुआ कि हर इंसान की जिंदगी में सबसे पहली महत्वपूर्ण घटना उसका दुनिया में जन्म लेना है और सबसे आखरी महत्वपूर्ण वाक्य शरीर का त्यागना है।  जैसे कि उसकी तालीमी जिंदगी में सबसे पहला वाकिआ उसका स्कूल में भर्ती होना और आखरी वाकिआ कॉलेज से निकलकर दुनिया में दाखिल होना होता है। इन दो हुदूद के अंदर यानी जन्म व मरन के दिनों दरमियानी अर्सा में हर इंसान को हजारों वाकिए पेश आते हैं लेकिन अगर मुझसे दरयाफ्त किया जाये तो सबसे अहम वाकिआ उसके जानिब मालिक की खास दया का संबोधित होना है। 

राधास्वामी दयाल का बचन है कि जहां 10 सत्संगी मिलकर मालिक की कीर्ति करते हैं वहां माली खास दया फरमाता है । और 27 दिसंबर के करीब दयालबाग में दह हजार सत्संगी मौजूद होंगे इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि उन दिनों में मामूल से हजार गुनी दया नाजिल होने का मौका है। राधास्वामी सत्संग सभा ने इसी गरज से सत्संगियों को इस मौके पर जमा होने और घर से चलकर सफर की तकलीफ बर्दाश्त करने के लिए मजबूर किया।

 दुनियावी जिंदगी का सबसे अव्वल अहम वाकिआ हम देख चुके हैं और आखिरी वाकिआ भी एक दिन जरूर ही देख लेंगे! अब अगर दरमियानी अर्से  का भी अहम वाकिआ देखने में आ जाए तो बहुत अच्छा हो । इन बातों के जिक्र के अलावा दयालबाग वालों की तरफ से नवागत भाइयों और बहनों का स्वागत किया गया।।                      

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**र 

परम्  गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1- 

कल से आगे-( 15 ) 

और जो किसी वक्त अभ्यासी का बस न चले और धार जोर के साथ इंद्रियों के तरफ रजू करें और ऊपर की तरफ तवज्जह नाम या रुप या शब्द में न आवे, तो अभ्यासी को चाहिए कि उस धार की कार्रवाई के पीछे अपने मन में पछतावे और शरमावे और चरणों में राधास्वामी दयाल के प्रार्थना करके माफी माँगे और आइंदा को होशियारी करें , तो भी उस धार की कार्रवाई का असर कम हो जावेगा यानी उस कार्रवाई का फल बहुत हल्का हो जावेगा।  और आइंदा को होशियारी जारी रही तो माफी भी हो जावेगी।।                        

( 16 ) इसी तरह से परमार्थी का काम आहिस्ता आहिस्ता बनता जाएगा , यानी भूल चूक उसकी बराबर माफ होती जाएगी, इस शर्त पर कि वह अपनी मेहनत और कोशिश वास्ते उलटने धार के मुख को सच्चे मन से जारी रक्खें और अपने कसूर पर शरमाता और पछताता रहे और प्रार्थना करता रहे। तब दिन दिन सफाई हासिल होती जाएगी, यानी  मन और चित्त निर्मल और निश्चल होते जाएंगे और एक दिन माया के घेर से निकलकर उसकी सुरत संत सतगुरु राधास्वामी दयाल की मेहर से दयाल देश यानी अपने निज घर में पहुंच जावेगी।।                            ●●●●【शब्द】●●●●                       सुरतिया मान तजत। आज सत्संग में रस पाय।१। मन का सँग कर हुई दीवानी। भोगन में लिपटाय।२।  जगत बासना नित्त बढावत। दुक्ख सहत फिर फिर पछताय।३।  करम धरम संग हुई बावरी। देवी देव पुजाय ।४।   तीरथ बरत जगत ब्यौहारा। नित्त करें सिर करम चढाय।५।  संतन की बानी नहीं पढती। मोह जाल में रही फँसाय।६।  भाग जगा गुरु सन्मुख आई । निज घर का उन भेद सुनाय। ७।  जग का झूठा खेल पसारा। बहु बिध गुरु ने दिया समझाय।८।  समझ बूझ सत्संग में लागी। मान बडाई तज दई आय।९।  गुरु से प्रीति करत अब साँची। सुरत शब्द की कार कमाय।१०। घट में निरख बिलास नवीना। गुरु चरनन परतीत बढाय।११। चरन सरन राधास्वामी हिये धर। लीना अपना काज बनाय।१२। क्रमशः                                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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