**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1
- कल से आगे :-(5)
जो सच्चे परमार्थी जीव है उनको संत सतगुरु या साधगुरु जरूर मदद देते हैं और जो वे उनका बचन मानकर सत्संग और अंतर अभ्यास बराबर करें जावेंगे तो ऐसे जीवो को थोड़ी बहुत पहिचान भी पूरे गुरु की आहिस्ता आहिस्ता आती जावेगी । पर जब तक की अंतर में सफाई अच्छी तरह न होवेगी और सच्चे मालिक का सच्चा प्रेम थोड़ा बहुत मन में नहीं आएगा, तब तक यह पहचान पक्की नहीं होवेगी और न हर वक्त कायम रहेगी।।
(6) अंतर की सफाई से मतलब यह है कि मन में चाह संसार के दो भोग बिलास की और उसकी तृष्णा बाकी न रहे।।
जरूरी और वाजिबी चाह वास्ते अपने और अपने कुटुबं के पालन और पोषण में औसत यानी मध्य के दर्जे पर सच्चे परमार्थ की प्राप्ति में इस कदर विघ्न नहीं डालती है, पर अनेक तरह की चाहों का मन में भरा रहना और नित्त उनका बढ़ाना और उन्हीं के पूरा करने के निमित्त जतन और मेहनत करते रहना मन को मैला करता है। और ऐसे मन में सच्ची प्रीति और प्रतीति का सच्चे मालिक और सच्चे गुरु के चरणों में ठहरना और उनकी दया की परख और पहिचान का आना मुश्किल है।क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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