कबिरा सूता क्या करे , बैठा हो तो जाग ।
जाके संग ते बीछड़ा , ताही के संग लाग ।।
बस्तु कहीं ढूंढ़त कहीं , कै विद आवै हाथ ।
कह कबीर तब पाइये , जब भेदी लीजै साथ ।।
मेरे प्रेमी भाईयों ! कहने से बात बनती तो बन गई होती , सुनने से बनती तो बन गई होती और पढ़ने से बनती , तो भी बन गई होती । बात तो बनती है चलने से और अमल करने से । परमात्मा की राह अपने भीतर की तरफ मुड़ जाने की राह है और हमारी सारी खोज और सारी तलाश बाहर की खोज है । परमात्मा के रास्ते में खयाल या विचारों को इकट्ठा करना है , उन्हें समेट लेना है और सब कुछ छोड़कर खाली हो रहना है ।
यह छोड़ना और पकड़ना खयाली ही होता है । मान लीजिए हम कहीं घर से बाहर हैं आफिस , बाजार या दूसरे शहर लेकिन खयाल है कि घर में क्या हो रहा होगा , बच्चे कैसे होंगे ? अब तो सुविधा है , पहली फुरसत में लोग फोन कर लेते हैं । उस समय की कल्पना कीजिए , जब दुनिया में सड़कें कम थीं , साधन कम थे , चिट्ठियों से ही समाचार मिल पाते थे । यकीन मानिए उस दौर का आदमी आज के आदमी से ज्यादा संतोषी था । उसमें धीरज और साहस अधिक था । उसमें परमात्मा के प्रति विश्वास अधिक था । अच्छा ! क्या हुआ जो मैं घर पर नहीं हूँ , भगवान हैं न ! वह सब ठीक रखेंगे ।
सुविधाओं ने जीवन को आसान कर दिया है लेकिन इन्सान को भीतर - बाहर दोनों तरफ से कमजोर कर दिया है ।
हम किसी वस्तु या शय को साथ लिये या हाथ में लिये नहीं फिरतें हैं लेकिन खयालों में लिये फिरते हैं । यह विचारों में पकड़े रहना ही मोह या लगाव है । कभी अनजानी दु:ख के अन्देशे परेशान करते हैं तो कभी अनजानी कल्पनायें दु:ख देती हैं और हमारा प्रभु पर विश्वास या भरोसा दिन ब दिन कमजोर पड़ता जाता है ।
ऐसे बेविश्वासी को कहीं परमात्मा मिलता है । खयाल से सारी चिन्ताओं को धोकर निकाल फेंको और मुकम्मल उसके भरोसे हो रहो । उसके किए पर उसके फैसले पर उसकी देनी पर राजी रहो । छोड दो उसके ऊपर जैसा छोड़ने का हक़ है ।
रामनाम रस पीजै मनुआं , राम नाम रस पीजै ।
तज कुसंग सतसंग बैठ नित , हरि चरचा सुनि लीजै ।
काम क्रोध मद लोभ मोह कूँ , बहा चित्त से दीजै ।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर तेहि के रंग में भीजै ।।
सारी महिमा खयाल की है । खयाल में ही दुनिया है । खयाल में ही एत्साल है , खयाल में ही विसाल है । इस खयाल को ही मकरूहात से पाक़ नेक और दुरुस्त करना है । मतलब यह कि बुराइयों के लिए प्रेरित करने वाले विचारों को दूर फेंक देना है और सद् विचारों को पकड़ लेना है ।
फिर एक दौर ऐसा भी आता है कि सारे खयालों से पीछा छूट जाता है और इन्सान अपने असल की ओर लौटना शुरू कर देता है । यही जीवन में सबसे बड़ी और अनमोल कमाई होती है ।
पौ फाटी पगरा भया जागा जीवा जून ।
सब काहू को देत है चोंच समाता चून ।।
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।
कह कबीर पिउ पाइए , मन ही की परतीति ।।
ऐ लोगों ! बहुत पढ़े - लिखे होने का कोई फायदा नहीं , यदि करनी ऊंची नही है । उसे गरीब और मिस्कीन बहुत प्यारे हैं । तुम्हारी दौलतों और ज़ाह से उसे क्या गरज़ ?
उसे अपनाना चाहते हो तो सबको अपनाना सीखो । वह छोटे - बड़े , पढ़े - बेपढ़े , जाति - पांति और गरीब - अमीर के नाम पर भेद नहीं करता । सब उसी के बच्चे हैं और वही सबका पालनहार और रखवाला है ।
मैं फूल चुनने आया था बागे हयात में
दामन को ख़ार ज़ार में उलझा के रह गया
मेरे प्रेमी भाईयों !
दरिया भव जल अगम अति सतगुरु करहु जहाज ।
तेहि पै हंस चढ़ाइ कै जाइ करहु सुख राज ।।
--दरिया साहब बिहार वाले
( घर का नाम पीरनशाह था )
बिना गुरु कल्याण होता नहीं है । वैसे आजकल तो इनकी फौज ही खड़ी हो गई है । अब मालिक की मर्जी जिसको जो मिले ।
ज़िन्दगी आमद बराये वन्दगी
ज़िन्दगी बे वन्दगी शर्मिन्दगी
---मौलाना रूम रहम ०
यह जीवन तो भक्ति के लिए , अपनी आकबत या परलोक सुधारने के लिए ही मिला है । उसमें भी सबसे अच्छी बात है परमात्मा से प्रेम तथा उसकी दया से मुक्ति हासिल करना । मुक्ति या मोक्ष या दूसरे शब्दों में कहें तो प्रभु की समीपता हासिल करना यानी क़ुरबत ।
गुरू खोजो री कि जग में दुर्लभ रत्न यही है ।
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मालिक दयालु दया करे
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अदना गुलाम गुलाब शाह क़ादरी
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