*राधास्वामी!!
05-08-2020
- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ
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(1) तीजा भादो मास बिरह की दौं लागी भारी। देखत अस अस हाल पिया आये संत रुप धारी सहज में मोहि दरशन दीन्हा। घर का भेद बताय, दया कर मोहि अपना कीन्हा। शब्द की घट में राह लखाय। सतगुरु चरन अधार सुरत मन धुन सँग देत चढाय।३। (प्रेमबानी-3-शब्द-5,पृ.सं. 331)
(2) कोई सुनो गुरु के निज बचना।।टेक।। करनी तुझसे तब टबन आवे। छिन छिन भाग रहे जगना।।-( चरन भरोसा चित्त में दृढ कर। राधास्वामी नाम रहें जपना।।) (प्रेमबिलास-शब्द-28-पृ.सं.35)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
-आज शाम के सतसंग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-
( 67)
जिन सुरतों पर निम्न कोटि की चेतनता अर्थात माया का आवरण ऐसा दृढ था की आदि चैतन्य धार के प्रभाव से दूर न हो सका उनको अपने आवरणों सहित नीचे उतरना पड़ा क्योंकि वे आवरण की मलिनता के कारण निर्मल चेतन देश में , जिसे आदि चैतन्य धार से पहले पहल प्रकट किया, ठहरने के योग्य न थी ।
जब रचना की दूसरी क्रिया आरंभ हुई तो इन शेष सुरतों में से बहुत सी ब्रह्मांड अर्थात निर्मल माया देश के प्रकट होने पर जागृत हो गई और उन्हें उस देश में स्थान मिल गया , परंतु फिर भी असंख्य सुरते जागृत ना हो सकी क्योंकि उनके ऊपर माया के आवरण नितांत दृढ थे।
इसलिए उनको ब्रह्मांडदेश से भी नीचे उतरना पड़ा और रचना की तीसरी क्रिया के आरंभ होने पर पिंड अर्थात मलिन माया देश में स्थित हुई। तात्पर्य यह है कि रचना से पहले सब सुरते कुलमालिक में लीन थी।
रचना की पहली क्रिया या चक्र के आरंभ होने पर उनमें से असंखय सुरतें आदि चैतन्य धार की विशेष चेतानता के प्रभाव से पूर्ण चैतन्य हो गई किंतु इनके अतिरिक्त ऐसी असंख्य सुरतें थी जिन्हें रचना के दूसरे चक्र के आरंभ होने पर ब्रह्मांड में उतरना पड़ा। और इसी प्रकार ऐसी भी असंख्य सुरतें थी जिन्हें रचना के तीसरे चक्र के आरंभ होने पर पिंड देश में आना पड़ा।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-
परम गुरु साहबजी महाराज!**
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