बनामे ऊ केह ऊ नामे नदारद
बहरनामे किह ख़्वानी सर बर आरद
- - - - मौलाना रूम
मैं उसके नाम से शुरू करता हूं जिसका कोई नाम नहीं। परन्तु उसे जिस भी नाम से पुकारो (वह) उत्तर देता है । ( क्योंकि सारे नाम उसी के हैं)
जीव दया जो मन में राखे ।
प्रेम का रस कैसे ना चाखे।।
मेरे प्रेमी भाईयों! यह सारी सृष्टि ईश्वर की किताब है । मगर आंखों पर पर्दा पड़ा होने से हमें सुझाई नहीं देता । इस संसार की किताब के हर पन्ने पर खूबसूरत शब्दों में (अक्षरों से) हर तरफ " परमेश्वर" लिखा हुआ है ।
जो मनुष्य कामनाओं और भावनाओं को तर्क़ ( छोड़ता) करता रहता है और तमाम जीवों से प्यार करता रहता है और किसी से बैर नहीं करता, वही ईश्वर का प्यारा है । जिसको किसी से बैर नहीं और निष्पक्ष (बिना तआस्सुब) रहकर दुनिया की नि:स्वार्थ सेवा करता है, और जो कुछ करता है सब भगवान को अर्पण करता है या कर देता है, वह भगवान के हाथों का यन्त्र बनता है ।
आधे फसाद की जड़ सगुण और निर्गुण भगवान या परमात्मा और उसकी भक्ति को लेकर है । सगुण और निर्गुण यानी साकार और निराकार परमात्मा ।
वह सगुण और निर्गुण दोनों है । रूप बना और नाम हुआ।
सगुण भक्त के लिए इन्द्रियां एक साधन हैं । मान लीजिए एक फूल है और परमात्मा को पेश करना है । ( अर्पित करना है) अब आंखों से परमेश्वर का रूप देखे, कानों से परमेश्वर की कथा सुनें, जबान से उस प्रभु का नाम जप करें, पावों से परमेश्वर मूर्ति की परिक्रमा करें । इस तरह सारी इन्द्रियों को उस परमेश्वर की नज़र कर देना है ।
निर्गुण भक्ति में इन्द्रियां रुकावट प्रतीत होती हैं । उन्हें काबू में रखना है । इन्द्रियों को विलासिता में भटकने नहीं देना चाहिए । निर्गुण भक्ति ज्ञान से भरी है । सगुण भक्ति प्रेम, सेवा और श्रद्धा से भरी है। सगुण भक्ति फूल समान और निर्गुण भक्ति बीज समान है ।
ऐ इन्सान! तू भगवान् से लगन लगा ले और कर्म करता रह, क्रोध और नफरत को अपने दिल से निकाल दे । ठीक भगवान से लग रहना बहुत ऊंची बात है ।
हर जीव में शिव है, इन्सान को समझ कर प्रेम भाव से इसकी सेवा करनी चाहिए । सभी भगवान् की मूर्तियां हैं।
कर्म, भक्ति और ज्ञान, जीव - तथा शिव, यानी ख़ालिक, मख़लूक और ख़िलकत, सब एक रंग । ईश्वर ही ज्ञान और प्रेम है ।
लाफानी (नित्य) जाते आला - ईश्वर। हस्ती - ए - खुदा - ए - वाहिद ( खुदा या परमात्मा की हस्ती जो अद्वैत है) । परमेश्वर सम्बन्धी ज्ञान होना और प्रेम का पैदा होना, दोनों एक ही बात है ।
सो ही भक्ति सो ही ज्ञान ।
एक राम को ले पहचान ।।
प्रेम है ईश्वर प्रेम गुरू है, प्रेम है यह संसार।
अपने पराये सब प्रेमी हैं प्रेम तत्त्व ही सार ।।
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मालिक दयालु दया करे
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अदना गुलाम गुलाब दास क़ादरी
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