Monday, August 10, 2020

किताब गली

 किताब गली


स्वाति गौतम के पास दिलचस्प किस्सों का खजाना है, जिन पर कई सफल रचनाएं बुनी जा सकती थीं। अफसोस! उन्होंने सारी कहानियां एक ही उपन्यास में बिखेर दीं, ऐसे में सब कुछ गड्डमड्ड हो गया...



अफसानों की भूल भुलैया



रंगी लाल गली


उपन्यासकार : स्वाति गौतम


प्रकाशक : एका, हिंद युग्म


मूल्य : 175 रुपए 

एटन चेखव (1860-1904) के पिता उन्हें खूब पीटते थे। अक्सर अकारण। त्रासद बचपन के काले दिनों की छाया ने चेखव को थोड़ा ज़िद्दी या फिर कहें, सिद्धांतवादी बना दिया था। स्वाभाविक तौर पर लेखन को लेकर उनके कुछ सिद्धान्त और मानक भी थे। कथाकारों से उनका विशेष आग्रह होता था कि कथा में एक भी अतिरिक्त, व्यर्थ की बात ना हो। निश्चित ही प्रयोगवाद के हिमायती लेखक चेखव से सहमत नहीं होंगे। आखिरकार, ये उनकी कड़ी शर्त है कि अगर ड्राइंग रूम की दीवार पर बंदूक टँगी दिखाई गई है तो वो किसी दृश्य में चलती हुई भी दिखाई जाए। चेखव का मानना था कि अगर ऐसा न हो तो बंदूक का जिक्र क्‍यों किया जाए?


'रंगी लाल गली" पढ़ते हुए चेखव का उक्त मापदंड जेहन में बार बार उभरता है। ऐसा भी नहीं कि स्वाति के लेखन में निष्प्रयोज्य चीजों की भरमार है। कई बार लेखक कथा में तार्किकता की लगाम पूरी तरह साध नहीं पाते पर चेखव की याद के पीछे मुख्य कारण है कि लेखिका बहुधा बिखरे हुए कथा सूत्र को तर्कसंगत नहीं बना पातीं और अपने आख्यान को एक क्रम में जोड़ने से चूक जाती हैं। वे मूल स्टोरी ट्रैक से बार बार विलग होती हैं।


परिवार से विचलन, प्रेम की तलाश, विडम्बनाओं के थपेड़े, महत्वाकांक्षा की दौड़, प्रपंच और धोखे की बाढ़ जैसे अनगिनत मुद्दे लेकर अलग-अलग दिलचस्प बयान सुनाती हुई स्वाति तब निराश करती हैं, जब यकायक कोई कहानी बगैर किसी ठोस निष्कर्ष के बीच में राह भूल जाती है और मुख्य कहानी से उसका तारतम्य नहीं बनता।


कृति की बड़ी सीमा यही है कि दिलचस्पी जगाने और पाठकों के मन में उत्सुकता पैदा करने में सफल होने के बावजूद किताब मंज़िल तक नहीं पहुंचती। सच तो ये है कि टुकड़ों में खूब रोचक होने पर भी ये किस्से कोई मुकम्मल शक्ल नहीं बना पाते- न सरपंच के दूसरे ब्याह का किस्सा और न ही साइकिल वाली की उलझनें। झटका तो तब लगता है, जब आप किताब को समाजिक उपन्यास की तरह पढ़ रहे होते हैं और न जाने किस तरह एक सीरियल किलर कथा में एंट्री कर लेता है। 


विविध संभावनाओं से भरपूर, अच्छी किस्सागो स्वाति अगर बार बार फ्लैशबैक में जाने के मोह से बच पातीं, बैग छीनने वाले लुटेरे के हाथों भांजे के मार दिए जाने, एनएसडी में पढ़ाई के बाद एक महत्वहीन नौकरी करने जैसे अतार्किक विवरणों से दूर रहतीं तो उनका ये उपन्यास भूल भुलैया में ना भटकता। 



● चण्डीदत्त शुक्ल

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