-रोजाना वाकिआत
-16 दिसंबर 1932 -शुक्रवार:-
नगर के बाहर के छेत्र से सत्संगियों का आगमन शुरू हो गया है। दयालबाग बोर्ड के इंतजामात भी पूरे हो गये हैं। पंडाल में 12000 लोग सरलता पूर्वक बैठ सकेंगे। पंडाल की छत और दीवारें दो सूती कपड़े की है जो दयालबाग फैक्ट्री में तैयार हुआ है। अंदर का क्षेत्रफल 30,000 वर्ग फिट है। बोर्ड ने दयालबाग की चप्पा चप्पा जमीन को साफ व समतल किया है। हजारों बिजली के लम्प लगायज है, बीसों पानी की टोटियाँ स्थापित की है। नुमाइशगाह भी खूब सजाई जा रही हैं। गर्जेकि जोर व शोर से तैयारी हो रही है।।
पंडाल में लटकाना करने के लिए आज 9 अदद Motto लिख कर दिये है। अग्रेंजी जबान में तीन, एक उर्दू में और बाकी हिंदी में। अंग्रेजी में 1 Motto के लफ्जी मानी यह है:-" सच्चे मालिक की सेवा में कोई भी कुर्बानी ज्यादा नहीं है" मगर मेरा दिली मतलब इस कडी का अर्थ प्रस्तुत करने से है:- ऐसे समरथ राधास्वामी पाये तन मन देती वार
ऐसे ही दूसरे Motto में "जो मेरे प्रीतम से प्रीत करे मोहित प्यारा लागे री" का अर्थ करने की कोशिश की है।।
अमेरिका में एक मिशन है जिसका नाम है Methodist Mission | यह लोग बडे विशाल ख्याल है। इस फिकरे के कुछ लोग लोमडी का शिकार करने के लिये चले। लोग घोडो पर सवार थे। बीसो शिकारी कुत्ते साथ से। रवाना होने से पहले पादरी साहब ने सब कुत्तों को Bless किया यानी आशिर्वाद दी की शिकार में कामयाबी हासिल हो। आ
आशीर्वाद देने के नजारे की फोटो खिंचावाई गई। न मालूम पादआ री साहब की तवज्जुह उस वक्त खुदा की जानिब थी या कैमरों की तरफ। अधिक तादाद लोग एक गरीब लोमडी का शिकार करने चले है। शिकार के लिये शिकारी कुत्ते साथ है लेकिन तो भु खुदि की बरकत की जरूरत महसूस होती है। दूसरे लफ्जों में एक तरफ पचास घुडचढे सवार और बीसों कुत्ते और खुदा थे और दूसरु तरफ अकेली लोमडी! कितनी बेहूदा व नाबराबर बराबर जंग थी। चुनाँचे अमरीका के अनेक अखबारों में अमेरिकन वीरता का खूब मजाक उड़ाया है। नामधारी पादरियों व उधार्मिक ईसाइयों की इस किस्म की कार्रवाई देख कर ही तो जन सामान्य के दिलों से मजहब की जानिब से श्रद्धा उठ रही है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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