" पहले कबहूं ना सुनी, अबहूं कहत हूं चेत ।
फिर पीछे पछताएगा, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत ।।"
जड़ समान सेवक बने, सारा आप खोय ।
मन राखे बैराग में, ताप न व्यापै कोय।।
मेरे प्रेमी भाईयों ! उस अनामी दयालु - दाता ने सबको क़ैद व बन्द में लाकर रख दिया है । सबकी गति एक - सी कर रखी है । क्या राजा क्या रंक ? रंक को थोड़े खाने के लाले जरूर पड़े हैं लेकिन वह तन और मन दोनों से मजबूत है ।
अगर हम बाज़ आते तो आज इस हाल में न होते। हमने नफ़रतों को गले लगाया और गुस्से के ज़ेरे असर आ गए । हमने ग़ैर धरम के मानने वालों को चुन - चुन कर गालियां दीं । हमने इन्सानियत के तक़ाज़ों को फरामोश कर दिया ।
हम भूल गए कि क़ुदरत का तरीक़ा - ए - अमल एक ही है । वहां कोई इम्तियाज़ नहीं । उसकी लाठी के आगे सारी पीठें झुकी हुई हैं । यहां किसी की कोई हुशियारी काम न आती।
जीना है ओर दूसरों को जिन्दा देखना है तो खुदी ( अहंकार) ख़ुदगर्ज़ी ( स्वार्थ ) नफरत और गुस्से जैसे शैतानी जज़्बातों को काबू में करना होगा । और खुद सुपुर्दगी अख़्तियार करनी होगी । अपने आप को उसके हाथों में छोड़ना होगा । जैसे नया पैदा हुआ नौमौलूद बच्चा दायी के हाथ में या मुर्दा, नहलाने वाले के हाथ में ।
क्या करोगे संरजाम जुटाकर, जब न तुम होओगे न तुम्हारी बस्तियां ही बची होंगी । एक वीराना होगा। डरो और बचो। मैं खुले रूप से डराने वाले की विरासत का पैरोकार हूं और तुम्हें, तुम्हारे अंजाम से डरा रहा हूं । कि तुमने यहां तो अपने लिए खांई खोदी ही, वहां भी अपनी हलाक़त का सामान इकट्ठा कर लिया है ।
अब भी वक़्त है तौबा का दामन थाम लो और सच्चों का रास्ता अख़्तियार करो । तुम्हारी ग़ामज़नी, तुम्हारी पेशक़दमी उसके ज़लाल को ज़माल में बदल देगी । रोना तो सीख लो । हो सकता है कि उसकी रहमत जोश में आए ।
मारग चलते जो गिरे, ताको नांही दोस ।
कह कबीर बैठा रहे, ता सिर करड़े कोस।।
दुनिया में चमत्कार का नहीं चरित्र का सिक्का चलता रहा है और चलता रहेगा । चरित्र तप बल है।
हरी हृदय सबके बसें , बिरला बूझे कोय ।
जे बूझे यहि भेद को, हरी सरीखे होय ।।
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मालिक दयालु दया करे
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गुलाम गुलाब शाह क़ादरी 🌹🌹🙏🙏
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