●तीन कड़वे नियम सार
आप मुस्कुराते रहो तो दुनिया आपके कदमो में होगी, क्योंकि आंसुओ को तो आपकी खूबसूरत आँखे भी जगह नही देती है.. वैसे दोस्तों इस प्रकृति के तीन कड़वे नियम जो की बिल्कुल सत्य है..!!
1. यदि खेत में बीज न डालें जाएं तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती हैं !!
👉 ठीक उसी तरह से दिमाग में सकारात्मक विचार न भरे जाएँ तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं !!
2- जिसके पास जो होता है, वह वही बांटता है !!
👉 सुखी सुख बांटता है, दुःखी दुःख बांटता है, ज्ञानी ज्ञान बांटता है, भ्रमित भ्रम बांटता है, भयभीत भय बांटता हैं।
3- आपको जीवन से जो कुछ भी मिलें उसे पचाना सीखो क्योंकि भोजन न पचने पर रोग बढ़ते हैं!!
👉 पैसा न पचने पर दिखावा बढ़ता है, बात न पचने पर चुगली बढ़ती है, प्रशंसा न पचने पर अंहकार बढ़ता है, निंदा न पचने पर दुश्मनी बढ़ती है, राज़ न पचने पर खतरा बढ़ता है, दुःख न पचने पर निराशा बढ़ती है, और सुख न पचने पर पाप बढ़ता है।
आपने कभी ये महसूस किया है कि जैसे जैसे आप बगीचे की तरफ बढ़ते हैं, तो ठंडी हवाएं आनी शुरू हो जाती हैं, बगीचा ठंडी हवाएं नहीं भेजता है, और ऐसा भी नहीं है, कि जब बगीचे के पास से कोई नहीं निकलता, तो बगीचा अपनी ठंडी हवाएं रोक लेता हो, यह तो उस बगीचे का स्वभाव है, कि उसके आसपास ठंडी हवा होती है। इसी प्रकार परमात्मा भी मंगलदायी है, जैसे जैसे आप परमात्मा के निकट जाते हैं, आपको आनंद का अनुभव होता है। परमात्मा एक चैतन्य का विस्तार है, परमात्मा एक व्यक्ति नहीं है। अपितु एक चैतन्य है। इसीलिए आप हमेशा सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें। जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है, क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं। भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है,जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही, अपनी इच्छा केवल घर की चहार दीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।
घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है। जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा। नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें, कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा। अतः आपसे विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें। यदि आपको मेरे इस लेख में कही कुछ गलत लगा हो तो क्षमा चाहुगा, लेकिन आपको सही लगा है तो मुझे जरूर बताये ताकि मेरे लिखने का उद्देश्य यु ही बना रहे। प्रभु श्री राम से मेरी प्रर्थना है, की आप सदैव खुश रहें, हँसते मुस्कुराते रहे.. आपका मित्र बड़क साहब..✍️
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