Thursday, August 13, 2020

भंडारा स्वामीजी महाराज

 12/08 को सुबह आरती के समय पढा गया बचन


          (सारबचन नसर, भाग 2)


        92. गुरु की पूजा गोया मालिक की पूजा है, क्योंकि मालिक कहता है कि जो गुरु द्वारे मुझको पूजेगा, उसकी पूजा क़बूल करूँगा और जो गुरू को छोड़कर और और पूजा करते हैं, उनसे मैं नहीं मिलूँगा। जो कोई यह कहे कि गुरू की पहचान बताओ तो हमको यक़ीन आवे, तब हम गुरू की पूजा करें, तो उससे यह सवाल है कि तुम जो मालिक की पूजा करते हो उसकी पहचान बताओ कि तुमने उसकी पहचान कैसे करी है। जो मालिक की पहचान है वही गुरू की पहचान है, क्योंकि हरि गुरू एक हैं, उनमें भेद नहीं। पर हरि की पूजा करने से हरि नहीं मिलेगा और सतगुरु की पूजा और सेवा करने से हरि मिल जावेगा, इतना ग़ौर कर लेना चाहिए। और जो कोई यह कहे कि जब हरि गुरू एक हैं तो हम हरि की ही पूजा न करें, गुरू की पूजा क्या ज़रूर है, सो यह बात नहीं हो सकती है। पहले भक्ति सतगुरु की करनी पड़ेगी, तब वह मिलेगा। यह क़ायदा उसने आप मुक़र्रर किया है कि जो गुरू द्वारे मुझसे मिलेगा उससे मैं मिलूँगा, निगुरे को मेरे यहाँ दख़ल नहीं है। और गुरू पूरा चाहिये।       

राधास्वामी

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