**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे :-(6)
इस हालत अभ्यास में सुरत को साफ मालूम होता है कि जो आनंद उसको शब्द की धार से (जोकि अमृत और प्रकाश की धार है ) मिलकर हासिल होता है, वैसा रस या आनंद इस लोक में बिल्कुल नहीं है ।
और ज्यों ज्यों अभ्यास बढ़ता जाता है, यानी जिस कदर सुरत ऊँचे को चढती जाती है, उसी कदर वह आनंद दिन दिन बढ़ता जाता है और अभ्यासी की हालत बदलती जाती है, यहाँ तक कि उसको इस दुनियाँ के भोग विलास और राज पाट और हुकुमत कुछ भी नहीं सुहाते है , और कुल मालिक सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रीति और प्रतीति गहरी और ज्यादा से ज्यादा होती जाती है और दुख सुख देह और दुनिया के उसको मालिक की दया से और अंतर के आनंद हासिल होने से बहुत कम ब्यापते हैं और जो ज्यादा ऊंचे दर्जे तक पहुंच हो जावे तो बिल्कुल नहीं ब्यापते।।
(7) अलावा इसके ऊपर के लिए हुए फायदे के सुरत शब्द मार्ग के अभ्यासघ को बीमारी और मौत के वक्त तकलीफ कम होती है, क्योंकि जिस रास्ते हो कर मरने के वक्त सुरत जाती है वह उस रास्ते को जीते जी किसी कदर देख लेता है और वहां की कैफ़ियत उसको सब मालूम हो जाती है । फिर मरने के वक्त उस रास्ते पर बहुत सुख और आनंद के साथ जाता है और अपने मालिक की कुदरत और दया को देखकर बहुत मगन होकर अपनी बडभागता की प्रशंसा करता है ।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाकिआत-
कल से आगे:
- रात के सत्संग में बयान हुआ कि सत्संगियों का यह उम्मीद करना कि महज उनके प्रार्थना करने पर उनकी हर जायज परमार्थी मांग पूरी हो जाएगी गलत है। उसके लिए हमें अपने अंतर में अधिकार पैदा करना होगा ।
इसके अलावा याद रखना चाहिए तो प्रार्थना करना नाजायज नहीं है लेकिन भक्ति मार्ग में एक हद आती है जब लबकुशाई (बोलना होंठ खोलना) नाजायज हो जाती है उतना करना काम अंग में बरतना शुमार होने लगता है । मगर यह दर्जा बहुत ऊँचा है। इस दर्जे में दाखिल होने वाले प्रेमी मौज पर निर्भर रहते हैं । मौलाना रुम फरमाते हैं :-
जे आशिकान अहले दुआगो दीगरन्द (मालिक की प्रार्थना करने वाले(सच्चे) प्रेमियों से भिन्न हैं।) गाह मी दोजन्द व गाहे मी दरन्द
(कभी सिलते है कभी फाडते है(ऊँच नीच स्थिति में रहते है), शुरू में प्रेमी जरा जरा सी बातों के लिए प्रार्थना करता है और मालिक उसका मन रखने के लिए उसकी अक्सर प्रार्थनायें मंजूर फरमाता है। लेकिन उसे ढंग सिखलाने और उसका दर्जा बढ़ाने के लिए फिर यह हालत होती है कि कम तादाद प्रार्थनायें मंजूर होती है और यह प्रतिकूल हालात बर्दाश्त करता हुआ मालिक के चरन ज्यादा मजबूती के साथ पकड़ता है।
फिर यह हालत आती है कि एक भी प्रार्थना मंजूर नहीं होती और एक के बाद दूसरी खिलाफ सूरत जहूर में आती है। ऐसी हालत में दृढ चित रहना किसी सूरमा ही का काम है वरना आमतौर प्रेमीजन का विश्वास डगमगा जाता है।
उस हालत में कामयाबी के साथ गुजर जाने पर फिर मौसम बदल जाता है और परिजन मौज पर निर्भर रहने लगता है और संसार के दुख-सुख उसके मन पर ज्यादा असर नहीं कर पाते। बाज प्रेमीजन दुःख की हालत सर पर आने पर सब्र से काम लेते हैं। लेकिन उत्तमतर बाद शुक्र से और बाज इजहार खुशी का करते हैं वही है जो हर वक्त अपने भगवंत की रजा में बरतते हैं और जिन्हें यह खबर भी नहीं होती कि इस वक्त कोई खास हालत सर पर आई है।
जिसके लिए सब्र, शुक्र वगैरह का खासतौर इस्तेमाल किया जावे। हम सब के लिए मुनासिब है कि जहाँ तक मुमकिन हो जल्द इस दर्जे में कदम रखे।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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