Monday, August 10, 2020

आज 10/08 शाम के सतसंग के पाठ औऱ वचन

 राधास्वामी!! 10-08-2020


- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                            

 (1) क्या भूल रही जग माहीं। घर को जाना है।।-( गति पूरी पाई आज। चरन समाना है।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-1 मिश्रित अंग-पृ.स. 336)                                        

 (2) सुन प्यारी मैं कहूँ जनाई।।टेक।।                              तुम चिन्ता मम हिरदय बसती। तुम क्यों रहो घबराई।।-(कोई दिन रोग सोग मिट जावें। देर नहीं जल्दी भुगताई।) -(प्रेमबिलास-शब्द-31,पृ.सं.39)                                                                  

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।                   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!!                                           

10-08 -2020 - 

आज शाम के सतसंग में पढा गया बचन

- कल से आगे-( 72) 

परंतु राधास्वामी-मत ऐसे म्लानचित्त और ग्लानह्रदय मनुष्य को शुभ सम्वाद देता है- हे मूर्ख ! तू ऐसा दरिद्र और अभागा नहीं है। पहले तू अपनी वास्तविकता सुन और फिर अपने संबंध में कोई विचार स्थिर कर- तू उसी कुलमालिक के जौहर का एक अणु है जिसके गुण और रचना का वृतान्त सुनकर तेरा ह्रदय इस प्रकार काकर हो गया। तेरी समर्थता, तेरी योग्यता और तेरी महत्ता भी अपार है। 

पांच फीट सात इंच का तेरा तन है ,हाड मास चाम तेरा आवरण है; पर तू इससे प्रत्येक तत्व है। तू न पृथ्वी से बधाँ है, न वायुमंडल से दबा है। कामनाओं का किंकर तेरा मन है, बे बाल और पर का पक्षी तेरा जीवात्मा है। तू सत् चित् आनंद और प्रेम स्वरूप है , तेरी सामर्थ्य अनंत है, तेरा ज्ञान अनंत है, तेरा आनंत अनंत है । तेरा ज्ञान अनंत है।चंद्र, सूर्य , नहीं-नहीं , पिंड और ब्रह्मांड की तेरे सामने क्या गिनती ?

 तू उस जाज्वल्यमान  देव की एक किरण है। जो गुण सूर्य के वेही सूर्य की किरण के ।अभी तुझे अपने असली स्वरूप का ज्ञान नहीं ।राजा का पुत्र गडरिये के घर पल कर अपना वास्तविक वैभव भूल गया। 

उठ, आंँख ,नाक, कान बंद कर, अंतर की आँख खोल और अपनी सामर्थ्य और अपने परम पिता के ऐश्वर्य का चमत्कार देख! आगे पग बढा और निज देश में पहुंच कर अपनी पैतृक संपत्ति का सुख भोग ।।                                          

 महल माँहि धस जाय, गुरुमुख को रोकें नहिं। मनमुख भटका खाय, चढ उतरे गिर गिर पड़े।।               

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*


(73)

यह जीवनप्रद शुभ सम्वाद सुनते ही विचारशील मनुष्य का रोम-रोम हर्षित हो जाता है । उसका म्लान चित्त एकदम प्रफुल्लित हो जाता है और कुछ चिन्तन के अनंतर उसके हृदय से वाणी उठती है-" पर क्या मैं अपने बल के अंतर की आँख खोल सकता हूँ, क्या मैं अपने बल से आगे पग बढ़ा सकता हूँ, क्या मैं अपने बल से आंख, नाक, कान बंद रख सकता हूँ?"।।    

               🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻       

                            

यथार्थ प्रकाश- भाग पहला -

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


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