**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1
- कल से आगे-( 18 )-
यह ख्याल इन विद्यावान् और बुद्धिवान् लोगों का गलत है। सच्चा मालिक अरुप और अकर्त्ता भी है और रुपवान और कर्ता भी है। जो वह आदि में रुप नहीं धरता, तो रचना में कोई रुप प्रगट नहीं होता।।
(19) अब ख्याल करो कि आदमी इस लोक की रचना में सबसे श्रेष्ठ और उत्तम है और उसको कुल इख्तियार और हुकूमत इस लोक में दी गई है । उसका जो रूप है वही रूप या उसका नक्शा या खाका थोड़ी बहुत कमी के साथ सब जानदारों में जैसे चौपाये और परंद और कीड़े मकोड़े वगैरह में बराबर नजर आता है। जब कि नीचे की रचना में इसी आदमी का रुप या उसका नक्शा या खाका बराबर चला गया है, तो अब दरयाफ्त करना चाहिए कि आदमी का रूप कहां से आया, यानी ऊपर के लोकों की रचना में यही रुप बढके दर्जे का जरूर होगा और कोई ऐसा स्थान रचना में जरूर है कि जहाँ आदि में आकार स्वरूप मालिक का प्रगट हुआ और फिर उससे नीचे की रचना में उसी का नक्शा या खाका दर्जे बदर्जे कमी के साथ बराबर चला आया है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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