*राधास्वामी!
! 06-08-2020-
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-(1)
कातिक काया ताक सुरत मन घर की सुध धारु गुरु सरुप धर ध्यान शब्द धुन सुनती झनकारु निरख घट अंतर उजियारी। अचरज लीला देख, होत अब तन मन सुखियारी। गुरु की बढती नित परतीत। छिन छिन दया निहार उमँगती नई नई भक्ति रीत।।-(५) (प्रेमबानी-3-शब्द-5 बारहमासा, पृ.सं.332)
(2) सखी आज देखो बहार नई।।टेक।। भक्ति भाव मेरे हिय बिच जागे, प्रेम का रंग चढी। शील संतोष और बिरह अनुरागा, इन सब थान गडी।।-(हंस किले पर देखन आए,, शोभा अद्भुत आज नई। चरनअधारी भक्तसहेली, देख देख मुसकाय रही।।) (प्रेमबिलास-शब्द-29,पृ.सं.36)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी !! 06-08 -2020 -
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे -(68)
संतमत बतलाता है कि निर्मल चेतन देश के विस्तार का कोई वार पार नहीं है। वहाँ का सब व्यापार अनंत और अपार है क्योंकि उस देश में माया या निम्न कोटि की चेतनता की मालिनता का अभाव है और वहाँ निर्मल चेतनता ही का प्रकाश है, किंतु निर्मल चेतन देश के नीचे जो माया की मिलौनी का थोड़ा बहुत जोर आरंभ हो गया इसलिए दोनों नई बातें उत्पन्न हो गई -
पहली यह कि निर्मल चेतन देश और ब्रह्मांड के दरमियान एक सीमांतप्रदेश स्थापित हुआ जिसे संतमत में महासुन्न कहते हैं, और
दूसरी यह कि ब्रह्मांड का विस्तार नियत हो गया। हाँ जोकि रचना का दूसरा चक्र आरंभ होने पर अचिंत्य निम्न कोटि की चेतनता निर्मल चेतन देश से उत्सृष्ट हुई अर्थात् झड़ी थी इसलिए इस सामग्री से असंख्य ब्रह्मांड स्थापित हुए और इसी प्रकार रचना का तीसरा चक्र आरंभ होने पर ब्रह्मांड देश और पिंड देश के दरमियान एक विशेष सीमांतप्रदेश स्थापित हुआ जिसे चिदाकाश कहते हैं और ब्रह्मांडों से उत्सृष्ट सामग्री से असंखय पिंड स्थापित हुए।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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