Thursday, August 13, 2020

रोजाना वाकिआत-

 *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- 


कल से आगे- 

रात के सत्संग में एक महत्वपूर्ण विषय पर रोशनी डाली गई।  दुनिया आमतौर पर मन व इंद्रियों के अंगों में बरतती है और दुःख पाती है ।जब दुनिया में कोई महापुरुष जन्म लेते हैं तो मुनासिब वक्त आने पर अवाम को सत उपदेश सुनाते हैं। उपदेश सुनकर कुछ लोग उनके श्रद्धालु बन जाते हैं आहिस्ता आहिस्ता श्रद्धालुओं के दायरा बन जाता है और वह एक अलग दल या समूह की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं गोया इंसान की एक नई Species कायम हो जाती है ।और कुदरत का यह कानून है कि वह व्यक्तियों की परवाह नहीं करती वह Species  ही की परवाह करती है। 


जारों आम के पेड़ कटते हैं, मरते हैं, कुदरत को कुछ गरज नहीं iलेकिन आम की नस्ल कायम रखने के लिए जबरदस्त प्राकृतिक नियम मौजूद है। मसलन आम का रस मीठा है जो इंसान को पसंद है। इसलिए इंसान शौक से आम के पेड़ लगाते और सींचते हैं । उसकी हिफाजत के लिए आम के गूदे पर बदजायका का छिलका चढ़ा होता है और हर फल के मुंह पर एक टोपी चढ़ी होती है जिसके उखाड़ने पर निहायत बदजायका और गला छीलने वाला तेजाब सा होता है। इन इंतजामों ही से आम की नस्ल की काफी हिफाजत हो जाती है.

इसके अलावा आम का हर पेड़ जवान होते ही अपनी नस्ल की तरक्की के लिए सैकड़ों फल पैदा करता है। दूसरे जानदार दिन रात उन पर हमले करते हैं लेकिन हमला करने वालों से फलों की तादाद ज्यादा रहने से नस्ल नष्ट नहीं होने पाती।  वगैरह-वगैरह । 

अब इन सिद्धांतों को अपने ऊपर लगाओ । राधास्वामी दयाल की जगत में आगमन से हमारी भी एक जमात कायम हो गई है और खास किस्म के ख्यालात रखने की वजह से हम भी इंसानों की एक नई Species  बन गए हैं। और जिंदगी की कशमकश का कानून हमारे ऊपर भी असर कर रहा है। हमारे लिए भी दो ही सूरतें हैं या तो कशमकश में नष्ट हो जाय या जिंदा रहे मगर हमसे कुदरत का कोई काम निकल सकता है तो कुदरत के नियम हमारी रक्षा करेंगे।

 क्रमशः 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


परम गुरू हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे -(7 ) 


इन सब विघ्नों को दूर करने के वास्ते राधास्वामी दयाल ने दया करके यह जुगत बताई है कि जहाँ तक मुमकिन होवे कुछ वक्त अपना भजन, ध्यान और सुमिरन और सतसंग और संतों की वाणी के पाठ में खर्च करें, और जहाँ तक बन सके अपने मन को दुनियाँ के व्यर्थ के खयालों से बचाकर घट में रोकें।

 तब आहिस्ता आहिस्ता मन निश्चल और चित्त निर्मल होवेगा और अपने अंतर में कुछ-कुछ रस और आनंद पावेगा। और यही अभ्यास जारी रखने से हालत दिन दिन बदलती जावेगी और अंतर में रस और आनंद बढ़ता जाएगा और तब संसार के भोगों की चाह आहिस्ता आहिस्ता घटती जावेगी।।                                  

( 8 ) मालूम होवे कि मन से एक वक्त में एक ही काम हो सकता है,  यानी एक ही धार ताकत वाली मन से एक वक्त में उठकर  कार्रवाई कर सकती है, चाहे वह काम परमार्थी करें और चाहे दुनियाँ का ।।                             

 दुनियाँ के काम की धार का मुख इंद्रियों की तरफ यानी नीचे को है और प्रमार्थी काम की धार का जो संतमत के मुआफिक उठती है मुख ऊँचे की तरफ होता है।

 क्रमशः                           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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