प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा
1- क्यों हैं भगवान शिव की तीन आंखें?
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धर्म ग्रंथों के
अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं, लेकिन
एकमात्र शिव ही ऐसे देवता हैं जिनकी तीन आंखें हैं। तीन
आंखों वाला होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहते हैं।
लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो शिव का
तीसरा
नेत्र प्रतीकात्मक है। आंखों का काम होता है रास्ता
दिखाना और रास्ते में आने वाली मुसीबतों से सावधान
करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं, जिन्हें हम
समझ नहीं पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे
मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है। यह
विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस ज़रुरत
है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञा
चक्र
का स्थान है। यह आज्ञा चक्र ही विवेक बुद्धि का स्रोत
है। यही हमें विपरीत परिस्थिति में सही निर्णय लेने
की क्षमता प्रदान करता है। 2- शिव अपने शरीर पर भस्म
क्यों लगाते हैं? हमारे धर्म शास्त्रों में जहां सभी देवी-
देवताओं को वस्त्र-
आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है वहीं भगवान शंकर को
सिर्फ मृग चर्म (हिरण की खाल) लपेटे और भस्म लगाए
बताया गया है। भस्म शिव का प्रमुख वस्त्र भी है क्योंकि
शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। शिव का
भस्म
रमाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण
भी हैं। भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के
रोम
छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको
शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं
लगती। भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम
करती
है। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि
परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना मनुष्य का
सबसे बड़ा गुण है। 3- भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल क्यों?
त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है। यदि त्रिशूल
का प्रतीक चित्र देखें तो उसमें तीन नुकीले सिरे दिखते
हैं। यूं तो यह अस्त्र संहार का प्रतीक है पर वास्तव में यह
बहुत ही गूढ़ बात बताता है। संसार में तीन तरह की
प्रवृत्तियां होती हैं- सत, रज और तम। सत मतलब
सात्विक, रज मतलब सांसारिक और तम मतलब तामसी
अर्थात निशाचरी प्रवृति। हर मनुष्य में ये तीनों
प्रवृत्तियां पाई जाती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इनकी
मात्रा में अंतर होता है। त्रिशूल के तीन नुकीले सिरे इन
तीनों प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिशूल
के माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि इन गुणों पर
हमारा पूर्ण नियंत्रण हो। यह त्रिशूल तभी उठाया जाए
जब कोई मुश्किल आए। तभी इन तीन गुणों का
आवश्यकतानुसार उपयोग हो। 4- भगवान शिव ने क्यों
पीया था जहर? देवताओं और दानवों द्वारा किए गए
समुद्र मंथन से निकला
विष भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। विष के
प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से
प्रसिद्ध हुए। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना,
विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और
भावनाएं
होती हैं उन्हें मथ कर निकालना और अच्छे विचारों को
अपनाना। हम जब अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे
विचार ही निकलेंगे। यही विष हैं, विष बुराइयों का
प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया। उसे अपने
ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पीना हमें यह
संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने
देना चाहिए। बुराइयों का हर कदम पर सामना करना
चाहिए। शिव द्वारा विष पीना यह भी सीख देता है
कि यदि कोई
बुराई पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें।
5- क्यों है भगवान शंकर का वाहन बैल? भगवान शंकर का
वाहन नंदी यानी बैल है। बैल बहुत ही
मेहनती जीव होता है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद
शांत
एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी
एवं
शक्तिशाली होते हुए भी परम शांत एवं इतने भोले हैं कि
उनका एक नाम ही भोलेनाथ जगत में प्रसिद्ध है। भगवान
शंकर ने जिस तरह काम को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त
की थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता।
उसका
काम पर पूरा नियंत्रण होता है।
साथ ही नंदी पुरुषार्थ का भी प्रतीक माना गया है।
कड़ी
मेहनत करने के बाद भी बैल कभी थकता नहीं है। वह लगातार
अपने कर्म करते रहता है। इसका अर्थ है हमें भी सदैव अपना
कर्म करते रहना चाहिए। कर्म करते रहने के कारण जिस तरह
नंदी शिव को प्रिय है, उसी प्रकार हम भी भगवान
शंकर की कृपा पा सकते हैं। 6- क्यों है भगवान शिव के मस्तक
पर चंद्रमा? भगवान शिव का एक नाम भालचंद्र भी
प्रसिद्ध है।
भालचंद्र का अर्थ है मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाला।
चंद्रमा का स्वभाव शीतल होता है। चंद्रमा की किरणें
भी
शीतलता प्रदान करती हैं। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से
देखा जाए तो भगवान शिव कहते हैं कि जीवन में कितनी
भी बड़ी समस्या क्यों न आ जाए, दिमाग हमेशा शांत ही
रखना चाहिए। यदि दिमाग शांत रहेगा तो बड़ी से बड़ी
समस्या का हल भी निकल आएगा। ज्योतिष शास्त्र में
चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। मन की
प्रवृत्ति
बहुत चंचल होती है। भगवान शिव का चंद्रमा को धारण
करने
का अर्थ है कि मन को सदैव अपने काबू में रखना चाहिए।
मन भटकेगा तो लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाएगी।
जिसने मन पर नियंत्रण कर लिया, वह अपने जीवन में
कठिन से कठिन लक्ष्य भी आसानी से पा लेता है।
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