Thursday, February 27, 2020

सत्संग के मिश्रित बचन उपदेश बचनांश








प्रस्तुति - ऊषा रानी /
 राजेंद्र प्रसाद सिन्हा

28/02-2020

: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजानावाकियात-21 जुलाई 1932

- बृहस्पतिवार:

- आज किसी तरह फुर्सत मिलने से गीता अनुवाद दोहराना शुरु किया है। लेकिन बाहर से अनुवाद के लिये अभी से माँग आनी शुरु हो गई है।  अनुवाद के शौकीन भाई नोट कर लें कि उन्हे समंभवत दिसंबर माह तक इंतजार करना पडेगा।।                         रात के सतसंग में बयान हुआ कि अगर हम सुख के साथ जिंदगी बसर किया चाहते है और अपनी औलाद को सुखी बनाया चाहते है तो आपस की प्रीति बढावे और वह सब बुरी रस्में व आदतें जिनसे आपस में फूट पडती है एक एक करके छोड दें। जो शख्स अपने पडोसी से मोहब्बत नही कर सकता और जो अपने दुश्मन के कसूर माफ नही कर सकता वह मालिक के चरनों के प्रेम और अपने कसूरो की माफी की आशा न रखें। इसके अलावा चंद मुफीद मशवरे दिये गये। जिस पर अमल करने से संगत के अंदर परस्पर प्रीति में मनचाही तरक्की हो सकती है।।     
              
 डेरी के इंतजामात में पूरी तल्लीनता से परिवर्तन किया गया। अब उम्मीद है कि डेरी का काम जोर से चलने लगेगा। दयालबाग निवासी दिलोजान से इस मामले में बेहद दिलचस्पी ले रहे है। किसी संगत के जिंदा होने की यही निशानी है कि उसका हर मेम्बर उसकी संस्थाओं में पूरी दिलचस्पी ले। कलकत्ता व देहली मक्खन की खपत के बडे केंद्र है। अगर इन शहरों में यहाँ का मक्खन मिलने लगे तो डेरी बहुत जल्द तरक्की कर सकती है। और योजनाओं के अलावा दयालबाग में अपनी नहर बनाने का सवाल उपस्थित है। दया से रुपये का काफी बंदोबस्त हो गया है। लैला मजनूँ की आमदनी का रुपया इस नहर पर सर्फ करने का इरादा है। हवाई जहाज की तजवीज स्थगित कर दी गई। सैकडों सतसंगी रोटी के लिये तरस रहे है। जब तक रोटी का सवाल किसी कदर हल न हो जाये, गैर जरुरी मामलात स्थगित रखने होंगे। अपने यहाँ की हालत देखकर समझ में आता है कि बेरोजगारी की वजह से हिंदुस्तानी भाइयों के सर पर क्या गुजर रही है।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **


[28/02, 06:14] +91 97830 60206


: परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश-

 भाग 2-
 कल का शेष :-

और-- "जैसे नाला जब तलक बहता रहे। सब कोई नाले को नाला ही कहें।। और जब दरिया से नाला जा मिला हो। हो गया दरिया नहीं लाला रहा ।।"   सुरत उस धाम में प्रवेश करने पर परम पुरुस सच्चे  मालिक के साथ तदरूप हो जाती है और अपने निज गुणों में, जो कि सत्ता, चेतनता आनंद व प्रकाश है बर्ताव करती है। मुंडक उपनिषद में वही बात नीचे लिखे मंत्र में बयान की गई है:-" जैसे बहती हुई नदियाँ समुद्र में दाखिल होकर अपना नाम व रुप यानी आपा खो देती है ऐसे ही विद्वान यानी ब्रह्मविद्या का जानने वाला नाम व रूप से विमुक्त यानी अलग होकर परे से परे जो दिव्य यानी प्रकाशवान पुरुष है उसको प्राप्त होता है।


🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



[28/02-2020

*परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग-1-

कल का शेष:

- संतमत की सब तरह बड़ाई है कि वह धुर स्थान का भेद देता है और बाकी मत ब्रह्म देश के आगे नहीं गए । और संत देश की किसी को खबर ना पड़ी , क्योंकि सहसदलकमल जोकि दूसरे दर्जे में नीचे का मुकाम है यहां सब मतों का अंत है यानी यहीं पर सब का लक्ष्य है। और संत मत यानी राधास्वामी पंथ में जो आसान तरकीब अभ्यास की बताई जाती है वह हर एक शख्स  कर सकता है, दूसरों मतों में जो जुगत चलने की मुकर्रर है वह निहायत मुश्किल और खतरनाक है। और जोकि शब्द आदि जहूर कुल मालिक का है, इस सबब से इसकी धार को पकड़कर अभ्यासी धुर स्थान तक पहुंच सकता है । सिवाय शब्द के जो और धारे हैं वह नीचे के स्थानों से निकली है, उनको पकड़ कर अभ्यासी धुर तक नहीं जा सकता है।। 

                        और मालूम हो कि सुरत शब्द का रास्ता प्रेम से तय होगा, क्योंकि जिसको जिस बात का सच्चा शौक है वह उस काम को अच्छी तरह कर सकता है। और जोकि यह मारग निज प्रेम का है सच्चे मालिक के चरणो में, इस वास्ते चाहिए कि ऐसी प्रीति राधास्वामी पैदा करें जैसे कि पुत्र  पिता के साथ करता है। जिसके हृदय में सच्चा शौक मालिक से मिलने का है वही अधिकारी इस मत का है और उसी को इस अभ्यास में रस और आनंद आवेगा। और जिसके सच्चा शौक नहीं है उससे अभ्यास भी नहीं बन सकता , क्योंकि यह काम इंद्रियों को देह का नहीं है कि जबरदस्ती कराया जाए। जब तक मन में सच्चा शौक न होगा यह मारग चल नहीं सकता।  इंद्रियों का काम जबरदस्ती भी आदमी कर सकता है, पर अंतर में मन का चलाना बगैर प्रेम के नहीं हो सकता है।।         दान पुण्य वगैरह सब कामों में दाखिल है पर इनसे मुक्ति हासिल नहीं हो सकती और अंतर का परम सुख और परम आनंद प्राप्त नहीं हो सकता। और दर्शन फुल मालिक राधास्वामी दयाल का भी जब तक कि सूरत उलट कर ऊँचे देश में ना जावेगी नहीं पा सकती है।।             
     जिस शख्स  के सच्चा शौक हृदय में है और जिसको मालिक के चरणो में प्यार है, उसको शब्द सुनाई दे सकता है। और जोकि कि मालिक का मुकाम दूर है और उसका जल्दी दर्शन हासिल नहीं हो सकता है, इस वास्ते उसका जलवा कभी-कभी अभ्यासी को दिखलाई देना यह भी बहुत बड़ी बात है कि उसी को देखकर होश नहीं रहेगा और निहायत आनंद पोरस प्राप्त होगा। और फिर इसी तरह दिन दिन रस और आनंद बढ़ता जाएगा और काम पूरा बन जाएगा।

🙏🏻 राधास्वामी**🙏🏻








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