प्रस्तुति - देवेन्द्र किशोर
*कीर्तन और सत्संग मे जाने से फ़ायदा ही फ़ायदा होता है;*
*कभी नुकसान नही होता;*
*एक अँधा फूलों के बाग में चला जाता है;*
*अगर वह फूलों की खूबसूरती को नही देख सकता;*
*तो फूलों की सुगंध तो जरुर ले ही जायगा;*
*जैसे एक पत्थर पानी में डूबा दो;*
*चाहे पिघलता नहीं;*
*पर कम से कम सूरज की तपिश से तो बचा रहता है;*
*इसी प्रकार अगर हम सत्संग में जा कर नाम की कमाई करते हैं;*
*तो सोने पे सुहागा है;*
*नही भी करते*
*तो भी कम से कम बुरी संगत से तो बचे रहते हैं;*
*सत्संग वह आईना है;*
*जहाँ पर सत्संगी अपने अवगुणों को देख कर सुधारने की कोशिश करता है; और उसकी कोशिश ही उसे एक दिन गुरमुख बना देती है; हमारा खुद का सुधरना भी किसी सेवा से कम नहीं है;*
*ये भी एक बन्दगी है;...!!*🙏
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