प्रस्तुति - रीना शरण /
संत शरण /अमी शरण
एक बार की बात है एक सेवक ने सोचा के रात को छुप कर देखता हूं के संत सतगुरु कितना भजन सिमरन करते हैं। सतगुरु रात को सब काम करके 9:30 पर अपने कमरे में चले गए। वह सेवक छुप कर खिड़की में से देखता रहा रात को। उसने देखा के सबसे पहले मालिक एक पैर पर खड़े होकर सिमरन कर रहे हैं, देखते देखते उसकी आँख लग गयी जब वह 3 घण्टे के बाद उठा तो देखता है अब सतगुरु दोनों टांगो पर खड़े होकर सिमरन कर रहे हैं। फिर आधी रात ख़तम होने के बाद मालिक बैठ कर सुबह तक सिमरन भजन करते रहे। सुबह जब वह सतगुरु से मिला तो उनको पूछा के मालिक ऐसा क्यूँ?
उनका जवाब सुनकर हमारे जैसे निर्गुणी जीव की आँखे शर्म से झुक जानी चाहियें।
सतगुरु का जवाब था के एक टांग पर खड़े होकर मैं उन सत्संगियों के हिस्से का सिमरन करता हूँ जिन्होंने नामदान तो ले लिया पर बिलकुल मालिक की याद में नहीं बैठते क्योंकि उनकी जिम्मेदारी मैंने उठायी है तो उनकी जवाबदेही भी मेरी बनती है। दो टांग पर खड़ा होकर उनके लिए करता हूँ जो नामदान लेने के बाद भजन सिमरन को टाइम देते हैं पर पूरा नहीँ और बैठ कर मैं अपने लिए सिमरन करता हूँ क्योंकि मुझे अपने सतगुरु का मुख कभी मेरे लिए नीचे नहीं होने देना है।
सोचिये हम कहीं उस पहली वाली श्रेणी में तो नहीं?
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