प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
। । सतसंग के उपदेश भाग - 2 ||* *बचन (53)*
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
🙏 *।।वक़्तगुरू की ज़रूरत।।* 🙏
सन्तमत में गुरुभक्ति पर कमाल दर्जे का ज़ोर दिया गया है,
*चुनाँचे हुज़ूर स्वामीजी महाराज का बचन हैः-*
*’परथम सीढ़ी है गुरु भक्ती।*
*गुरुभक्ती बिन काज न रत्ती।।’*
यानी सन्तमत की तालीम के अनुसार परमार्थ के निशाने यानी मंज़िले मक़सूद पर पहुँचने के लिये पहला ज़ीना गुरुभक्ति है और बिना गुरुभक्ति के रत्ती भर तरक़्क़ी नहीं हो सकती। मगर हर कोई जानता है कि गुरुभक्ति की तालीम सिर्फ़ सन्तमत ही में नहीं है बल्कि और भी बहुत से मज़हबों में, जो भक्तिमार्ग कहलाते हैं, गुरुभक्ति की महिमा बयान की गई है।
चुनाँचे करोड़ों इन्सान अपने अपने तरीक़े से अपने गुरुओं, मुर्शिदों, अवतारों व पैग़म्बरों की भक्ति में मसरूफ़ हैं लेकिन सन्तमत में बज़ोर हिदायत की जाती है कि भक्ति ज़िन्दा व पूरे गुरु की करनी चाहिये।
जो गुरु हो चुके और अब ज़िन्दा नहीं हैं यानी जो इस वक़्त देहरूप में मौजूद नहीं हैं उनकी व नीज़ ऐसे शख़्सों की, जो हो चुके हैं या अब ज़िन्दा हैं लेकिन पूरे नहीं हैं यानी मंज़िले मक़सूद पर नहीं पहुँचे हैं, भक्ति करने में फ़ायदा नहीं है।
*हुज़ूर स्वामी जी महाराज ने फ़र्माया हैः-*
*‘गुरु तो पूरा ढूँढ तेरे भले की कहूँ।*
*पिछलों की तज टेक तेरे भले की कहूँ।*
*वक़्तगुरू को मान तेरे भले की कहूँ।’*
सन्तमत सिखलाता है कि हर एक जिज्ञासु पर फ़र्ज़ है कि किसी क़िस्म की पूजा-पाठ में लगने या किसी पन्थ या मार्ग पर पड़ने से पहले अपनी उम्र का एक हिस्सा सच्चे सतगुरु की तलाश में सर्फ़ करे और यहाँ तक फ़र्माया गया है कि अगर सच्चे सतगुरु की तलाश में किसी की सारी उम्र भी सर्फ़ हो जाय तो कोई हर्ज नहीं है। उसको आयन्दा फिर मनुष्यजन्म मिलेगा और सच्चे सतगुरु भी मिलेंगे। दूसरी मज़हबी जमाअतों में गुरू, मुर्शिद व अवतार वग़ैरह की पूजा व भक्ति का रिवाज तो क़ायम है लेकिन वक़्तगुरू के खोज के मुतअल्लिक़ सन्तमत की तालीम का कुछ लिहाज़ नहीं किया जाता।
चुनाँचे हिन्दू, मुसलमान व ईसाई भाई आमतौर पर ऐसे बुज़ुर्गों की भक्ति में लगे हैं जिन्हें उन्होंने कभी आँख से नहीं देखा और जिनसे मुलाक़ात करना मौजूदा हालत में क़तई नामुमकिन है और जो लोग ज़िन्दा गुरू व मुर्शिद की महिमा समझते हैं वे बिला पूरी तहक़ीक़ात किसी गद्दीनशीन या वंशावली गुरू की भक्ति में मसरूफ़ हैं या किसी ऐसे साधू, ब्राह्मण या मौलवी वग़ैरह के प्रेमी हो रहे हैं जिनकी ज़ाहिरा रहनी गहनी किसी क़दर ग़ैरमामूली है या जो ज्ञान, ध्यान के मुतअल्लिक़ अच्छा उपदेश सुना सकते हैं या जो दुख तकलीफ़ की हालत में यन्त्र, मन्त्र, तावीज़ या प्रार्थना के ज़रिये फ़ैज़ पहुँचा सकते हैं।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment