प्रस्तुति - स्वामी शरण /दीपा शरण/
सृष्टि शरण - दृष्टि शरण
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सतसंग के उपदेश-भाग-2-(30)
-【मन की शुद्धता के लिये उपाय।।
:-बाज लोग कहते है कि जबतक वे आजादाना जिंदगी बसर करते थे और परमार्थ के सम्बंध में सिवाय जबानी जमा खर्च के कोई यत्न या कोशिश न करते थे उनको अपना मन निहायत साफ सुथरा मालूम होता था लेकिन जबसे उन्होने मन व इंद्रियों के दमन यानी काबू करने के लिये बाकायदा यत्न शुरु किया उन्हे महसूस हुआ कि उनका मन कैसी गंदी व नापाक ख्वाहिशात से भरा हुआ है और जब उसे ठहराने के लिये कोशिश की जाती है तो बछेरे के समान, जो पीठ पर हाथ रखने से उछलता है, गैरमामूली-चंचलता दिखलाता है और उनकी तबीयत में बार बार यही आता है कि अभ्यास छोडकर खडे हो जायँ या लेट जायँ। बाज अनजान मन की यह हालत देखकर साधन की युक्तियों की निस्बत शक खरने लगते है और कुछ नादान जो साधन छोडकर बदूस्तरे साबिक मन के खेल कूद में लग जाते है। वाजह हो कि मन के इस किस्म के विघ्न सिर्फ सुरत-शब्द अभ्यास ही की कमाई में प्रकट नही होते, पतञ्जली महाराज ने भी अपने योगसूत्रों में इन विघ्नों का विस्तार से जिक्र किया है जिससे जाहिर होता है कि अस्टांग योग करने वालों को भी इन विघ्नों का सामना करना पड़ता था। असल बात यह है कि जब तक मन के अंदर मलिनता भरी है कोई भी शख्स कामयाबी के साथ योग साधन नहीं कर सकता इसलिए हर एक शौकीन अभ्यासी को मन की शुद्धता हासिल करने के लिए यत्न करना चाहिए। मन की शुद्धता कैसे प्राप्त हो ? हम लोग नहीं जवाब देंगे कि सत्य बोलने से मन को शुद्धता प्राप्त होती है लेकिन यह जवाब काफी नहीं है ।सत्य बोलने से तबीयत में शांति और निर्मलता जरूर आती है लेकिन हाल के और पिछले जन्मों के संस्कार और संसार के पदार्थों की कोशिश और अपने व संगी साथियों के मन के काम, क्रोध वगैरह अंगों का जो अपना असर जरूर ही दिखलाते हैं। केवल सत्य बोलने का व्रत धारण कर लेने से उनके नाकिस असर से बचाव नहीं हो सकता। जैसे जल में स्नान करने से थोड़ी देर के लिए बदन साफ़ व ठंडा हो जाता है ऐसे ही सत्य बोलने पर मन को थोड़ी देर के लिए निर्मलता व शीतलता प्राप्त हो जाती है लेकिन जल्द ही मन बदस्तूर मलीन हो जाता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
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