प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेमपत्र -कल से आगे -और मालूम हो कि तरकीब संतों के अभ्यास की ऐसी आसान है कि जिसको लड़का, जवान और बूढ़ा, स्त्री और पुरुष, पढा और अनपढ़, गृहस्थ और विरक्त सब कर सकते हैं । एक नशे की चीज और गोश्त का खाना मना है। गोश्त खाने से दिल सख्त और मोटा होता है और इसकी तवज्जुह बाहर की तरफ होती है और जिस जानवर का गोश्त खाया जाएगा उसका भी असर तबीयत में आएगा। और नशे की चीज के इस्तेमाल से दिमाग की रगों में खलल पैदा होता है। और यह भी शर्त है कि अभ्यासी किसी शख्स को अपनी निजी फायदे या मतलब के लिए दुख ना दें, मन करके सबको सुख पहुंचावे, नहीं तो दुख देने से तो बचे।। और खाने-पीने में इस कदर होशियारी रखें कि बहुत पेट भर कर ना खावे, किसी कदर हल्का रहे जिससे सुस्ती और नींद ना आवे । सिर्फ यह शर्ते दरकार है । और बाकी अभ्यास की तरकीब ऐसी है कि बहुत आराम के साथ उसकी कार्रवाई हो सकती है और सब जगह और सब वक्त बन सकती है। किसी तरह की रोक टोक नहीं है। और इस अभ्यास में सांस का रोकना नहीं होता है। और मतो में स्वाँस का रोकना बताया है, इस सबब से वह अभ्यास किसी से नहीं बना। और उसमें परहेज और खतरे सख्त है । इस सबब से गृहस्थ से तो बिल्कुल नहीं बन सकता और बिरक्त के वास्ते भी मुश्किल और खतरनाक है।। अब चाहिए कि सूरत को आशा अपने निज घर की बँधवा कर आहिस्ता आहिस्ता काम चल निकलेगा,पर इसकी मियाद मुकर्रर हो सकती है कि किस कदर अरस में काम पूरा होगा। यह अनुरागी के शौक पर निर्भर है, जिस का कदर शौक तेज होगा उसी कदर रास्ता जल्दी तय होगा ।। चलने का रास्ता यह है कि जिस धार पर या सड़क से सुरत आई है उसी रास्ते से जाना होगा।। रचना में कुल कारखाना धारों का है, ख्वाह वह नजर आवें या नही। जैसे जब हम देखते हैं तब रोशनी की धार आती है, जब सुनते हैं जब शब्द की धार , जब सूंघते है तब खुशबू या बदबू की धार आती है । और सूरज की रोशनी के जरिए यहाँ किरनों के जरिये से आती है। ऐसे ही सुरत किरण जिस धार की उतर कर आई है उसी धार पर उसको सवार करा कर ऊंचे की तरफ को चलना चाहिए। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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