**राधास्वामी!!
21-04-2020-
आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) आज मेरे धूम भई है भारी। कहूँ क्या राधास्वामी रुप निहारी।। बडा अब भाग अपार जगा री। तेज राधास्वामी बहुत बढा री।।(सारबचन-शब्द-तीसरा-पृ.सं.76)
(2) सुरतिया लिपट रही। धर शब्द गुरु सँग प्यार।।क्योकर गुन राधास्वामी गाऊँ। उन बिन नहिं मोहि और अधार।। (प्रेमबानी-2-शब्द-102,पृ.सं.224)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
21-04-2020-
ओआज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) आओ रे जीव आऔ आज, गहो राधास्वामी सरना।।टेक।। (प्रेमबानी-3-शब्द-8,पृ.सं.229)
(2) भाई तूने यह क्या जुल्म गुजारा। भक्ति का किया अहंकारा।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द-102,पृ.सं.148)
(3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 21-04- 2020 -
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
कल से आगे -(114 )-
जब मायाधारी और जगत के पदार्थों से संग बिलास करने वाला मन कठोर हो जाता है तो राग द्वेष के बस पड कर ईर्ष्या के संताप सहता है । ईर्ष्या दरअसल क्रोध अंग की एक शाख है ।
क्रोध तो कभी कभी जोर से प्रकट होकर खारिज हो जाता है लेकिन ईर्ष्या रुईलपेटी आग की तरह हमेशा सुलगती रहती है और हरचंद इंसान के पास भोग व सुख के सभी सामान अन्न, धन संतान वगैरह मौजूद हों
लेकिन ईर्ष्या का बाण लग जाने से उसे इनमें से किसी में रस नहीं आता ।
वह हमेशा ईर्ष्या की अग्नि में जलता रहता है और अपने से बढ़कर किसी गुणी या धनी को बर्दाश्त नहीं कर सकता और क्योंकि दुनिया में एक से बढ़कर एक गुणी व धनी मौजूद है इसलिए उसके लिए हमेशा मातम के समान बने रहते हैं । ईर्ष्या एक ऐसा असाध्य रोग है जो सच्चे मालिक की खास कृपा और सतगुरु की खास तवज्जुह ही से इंसान के दिल से दूर हो सकता है ।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 सतसंग के उपदेश -भाग तीसरा।।**
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