Friday, April 17, 2020

मिश्रित प्रसंग बचन और उपदेश





**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजाना वाक्यात -

कल का शेष-

करीबन 7:00 बजे अनेक अजनबी नौजवान होटल के कॉरिडोर में जमा हो गए और मेरे पास पैगाम भेजा कि कुछ बातें दरयाफ्त करने का मौका दिया जावे।  चुनांचे 2 घंटे के करीब विभिन्न विषयों पर बहस होती रही। वह लोग ज्यादातर इस्लाम की तालीम पर हमला करते थे। मैंने यथाशक्ति जवाब दिए जो कम से कम पड़ोस के कमरे में ठहरे हुए मुसलमान भाई को अत्यंत पसंद आए । मैंने यही साबित करने की कोशिश की कि सभी बड़े मजहबो की तालीम करीबन एक सी है। लेकिन किसी मजहब की असली तालीम से जानकारी हासिल करने के लिए उसके संस्थापक के कलाम का अध्ययन करना चाहिए ।

 और उस मजहब के essentials व  non-essentials (उसूल (मूल) व शोभा(सजावट)  का फर्क बुद्धिगत कर लेना चाहिए। उनका सबसे बड़ा एतराज यह था कि इस्लाम काफिरों की निस्बत कहता है कि यह जहन्नुम में डालने के काबिल है और जहन्नुम में डाले जाएंगे।

मैंने जवाब दिया कि गीता में भी श्री कृष्ण जी दैवी और आसुरी प्रकृतियों का जिक्र करके आसुरी प्रकृतिवाले इंसानों के लिए इसी किस्म के कलाम फरमाते हैं। इसके अलावा याद रखना चाहिए कि काफिर से मुराद और गैर मुस्लिम नहीं है। अगर काफिर से मुराद गैर मुस्लिम होती तो तगम बरसात के दीन इस्लाम की प्रचार करने पर अव्वल हजरत खदीजा ही मुसलमान हुई बाकी सब दुनिया काफिर ही थी। इसलिए कुल दुनिया ही दाखिल जहन्नुम होने की सजावार करार पाती है।

जहां तक मुझे याद है पैगंबर साहब ने यह कलाम उन दुष्ट प्रकृति वालों के मुतअल्लिक़ इस्तेमाल किये है जो धार्मिक और शांतिवादी मुसलमानों को अनायास दुखित करते थे। ऐसे लोगों के लिए जहन्नुम ही मौंजू ठिकाना है क्योंकि वहां की आग ही उनके पापों को नष्ट कर सकती है और बिना पाप नाश हुए उनकी बेहतरी नामुमकिन है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

 सत्संग के उपदेश -भाग 2-

 कल से आगे :-

यह दुरुस्त है कि आम इंसान के लिए इस उसूल पर चलना गैर मुमकिन है लेकिन सत्संगी भाइयों के लिये, जिन्हें सत्संग के अंदर जन्म लेने के वक्त से दुनिया की नाशमानता और तुच्छता और सच्चे मालिक के चरणो के प्रेम की महिमा व समर्थता के मुतअल्लिक़ उपदेश सुनाए जाते हैं और जो खुशी से सच्चे कुल मालिक के चरणो से मेल हासिल करना अपनी जिंदगी का उद्देश्य कायम करते हैं , अपनेतई औलाद के मोह से बचाना और अपना प्रेम सच्चे मालिक के चरणो में कायम करना मुश्किल ना होना चाहिए।

 मगर अफसोस है कि कुछ पुराने संस्कारों के कारण और कुछ सत्संग की तालीम काफी तौर पर जज्ब ना करने की वजह से बाज भाई आजमाइश में पड़ने पर घबरा जाते हैं। चुनाँचे बाज मौते इस किस्म की हुई की परमार्थी लिहाज से जिन्हे निहायत ही उत्तम कहना चाहिए लेकिन वाल्दैन का थोड़ी देर के लिए चित्त डोल गया।

एक नौजवान लड़के ने अपने मरने से पहले अपने वाल्दैन से साफ कह दिया कि मेरे लिए हुकुम रवानगी का आ गया है, आप दवा इलाज की तकलीफ न उठाये बल्कि अपनेतई होने वाली बात के लिए तैयार करें। मरने के दिन लडके ने अपनी माता से कहा मुझे चरध छूने की इजाजत दीजिए और मेरे सब कसूर माफ फरमाइये।

इसी तरह अपने भाई व दीगर रिश्तेदारों से रुखसत माँगी। रिश्तेदारों ने उसकी ख्वाहिश पूरी कर दी लेकिन तअज्जुब में आकर दर्याफ्त किया कि ऐसी बात क्यों करते हो? लडके ने जवाब दिया कि मुझे राधास्वामी दयाल बुलाते है लेकिन इप अपनी जानिब खींचते है, मुझे जाने के लिए इजाजत दें । मैं हरचंद एक नया सतसंगी हूँ लेकिन सबर के लिये तैयार हूँ और आप लोग कमजोरी दिखलाते हैं यह वक्त कमजोरी दिखलाने का नहीं है , वगैरह-वगैरह।

थोड़ी देर के बाद वह हुजूर राधास्वामी दयाल का  नाम लेता हुआ और मुस्कुराता हुआ नाशमान शरीर से अलहदा हो गया।

 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे
 -(3) इसमें शक नहीं कि पुराने स्वभाव और संग का असर बहुत देर में बदलता है और जिस कदर जिसकी उम्र दुनिया में दुनियादारों के संग गुजरी है, उसी कदर संसारी स्वभाव और संसारियो के संग का असर उसके मन में धंसा हुआ है।

और जिस कदर सत्संग सच्चे प्रेमी और भक्तों का और अंतर में अभ्यास सुरत का मन और इंद्रियों के घाट से हटने का होता हो जावेगा और समझ बूझ गहरी परमार्थ की आती जावेगी, उसी कदर पुरानी चाल ढाल बदलती जावेगी और यह काम आहिस्त आहिस्ता होगा।।

    (4) हर एक सतसंगी को, चाहे स्त्री हो या पुरुष, यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जब से वह सतसंग में शामिल हुआ तब से उसका जन्म बदलना शुरू हुआ और उसके साथ उसकी रहनी और बर्ताव परमार्थियों के मुआफिक थोड़े बहुत होने चाहिए । ऐसी कार्रवाई जल्दी नहीं हो सकती, पर जिसकी चाहत सच्ची है और इरादा मालिक की प्रसन्नता हासिल करने का सच्चा पक्का है तो उसकी हालत आहिस्ता आहिस्ता जरूर बदलती जावेगी।।     

 (5) भूल और चूक सबसे होती है और जब तक कि अंतर और बाहर के सत्संग का असर थोड़ा बहुत मन और बुद्धि पर ना होगा, तब तक मन और इंद्रियाँ पुराने स्वभाव के मुआफिक अक्सर कार्रवाई करेंगी। उसके पीछे जो सोच और समझ कर पछतावा और अफसोस और  और लज्जा मन में आवे वह भी एक दर्जे की दया समझनी चाहिए और वह दया आहिस्ता आहिस्ति  1 दिन बिकारी अंगो की कार्रवाई और बरताव से हटा देगी ।।                   

(6) हर एक सतसंगी को समझदा चाहिए कि जब दुनिया के बड़ों का इस कदर डर और लिहाज माना कि जो काम उनके नापसंद है, उनको नहीं करता है तो सच्चे मालिक का , जो सब बडो से बड़ा है और  जिसके प्रसन्न होने से सब दुख और क्लेश दूर होकर हमेशा का सुख और आनंद प्राप्त हो सकता है और जिसकी अप्रसन्नता से जन्माजन्म महा दुःख और क्लेश का भागी होगा, जिस कदर डर  और अदब मन में रख कर अपनी चाल और व्यवहार को दुरुस्त करना चाहिए।

 क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी








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