Wednesday, April 22, 2020

परम गुरू साहबजी महाराज के उपदेश और रोजानावाकियात




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

रोजाना वाक्यात -10 सितंबर 1932-

शनिवार:-

सुबह 5:30 बजे आगरा छावनी स्टेशन आ गया।  सफर खत्म काम शुरू।  6:00 बजे दयालबाग पहुंचकर सत्संग में सम्मिलित हुए और 8:00 बजे से हस्बमामूल काम शुरू कर दिया।  कहने के लिए 5000 मील की दूरी तय की लेकिन दया से ऐसा आराम रहा कि तबीयत पर जरा भी असर नहीं।

10:00 बजे मेंबरान एग्जीक्यूटिव कमेटी को बंगलुरु के हालात से सूचित किया और राय तलब की। सब की यही राय हुई कि देसी रियासत  मैं कदम धरना अपनी आजादी खतरे में डालना है इसलिए पूरी सावधानी से काम लेना चाहिए।

रावलपिंडी से रासकुमारी तक सफर करने का इत्तेफाक हो चुका है और हिंदुस्तान के करीबन सभी बड़े शहर देख लिए हैं । जगह-जगह आबोहवा के तजुर्बे के बाद मेरी राय यही है कि दयालबाग जैसा वातावरण कहीं भी नहीं है। राधास्वामी दयाल ने सत्संग के सदर मकाम के लिए बेहतरीन जगह चयनित फरमाई है । हमें इसकी पूरी कद्र करनी चाहिए । और वह वक्त दूर नहीं है कि दूसरे लोग भी इस राय से आम तौर सहमत होने लगे। ऐसी सूरते हाल में हमारे लिए यही उचित होगा कि जहां तक मुमकिन हो दयालबाग ही की तरक्की के लिए कोशिश करें और किसी दूसरे मकाम में अस्थाई कयाम करना हो या कोई काम चलाना हो तो महज जरूरत वक्त के मुआफिक व्यय उठाये।।   

  फ्रंटियर प्रोविंस के एक सतसंगी ने मिस्टर हर्स्ट का खत भेजा है। यह भाई मिस्टर हर्स्ट से विलायत में अक्सर मिलते थे। मिस्टर हर्स्ट एक हफ्ता दयालबाग में रह गए हैं। आपको उन दिनों नासिक के मेहर बाबा में बड़ी आस्था थी लेकिन इस खत में आप उनके मुत्तअल्लिक दूसरी ही बातें लिखते हैं। अब उनसे आपका दिल खट्टा हो गया है । आपने चंद दिनों गुजरे एक किताब की रचना खत्म की है जिसके 2 अध्यायों में राधास्वामी मत का हाल बयान किया गया है।


खैर देखेंगे कि आपने राधास्वामी मत का क्या हाल लिखा है लेकिन राधास्वामी मत का असली हाल साधन करने वाले ही की समझ में आ सकता है। तिल के ओझल पहाड़ का मजमून है।


🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

सत्संग के उपदेश -भाग-2

- कल से आगे:- अगर ऐसा होता तो अछूत लोगों की औलाद हो जाने पर अमूमन बदचलन और सब दुर्व्यसनों से भरी हुई होती और ऊंची जात वालों की औलाद सद्धर्मी और पुण्यकर्मी होती लेकिन क्या ऐसा देखने में भी आता है?

क्र  इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है। इसलिए वीर्य के अंदर संस्कारों के भेद की दलील भी बेकार है ।गालिबन इसी वजह से ब्रह्मांड पुराण के 1 श्लोक में बयान किया गया है- "जन्म से हर शख्स शूद्र ही होता है, संस्कारों की वजह से द्विज  कहलाता है, वेदों के पढ़ने से विग्र हो जाता है और जो ब्रह्मा को जान लेता है वह ब्रह्माण हो जाता है।" अगर इस लोक की तालीम सच मान ली जाए तो न सिर्फ जन्म की समानता का उसूल कायम हो जाता है बल्कि जितने संस्कारों की से हीन और वेदों से अनभिज्ञ ब्राह्मण हैं वे सब शुद्र की शुमार में आ जाते हैं।

अगर इस पर यह कहा जाए कि उपनयन संस्कारों से मनुष्य दिव्ज हो जाता है तो अगर शूद्रो व अछूतों का भी उपनयन कर दिया जावे वे भी द्विज बन जाए लेकिन इन गरीबों के उपनयन करने की स्मृतियों में इजाजत ही नहीं है।।               

 इन सब बातों पर गौर करने से मालूम होता है कि पवित्रता की हकीकत से आम लोग  नावाकिफ है और जैसे मजहब के मुतअल्लिक़ और बहुत सी बातों में अंधपरंपरा नकल की जाती है ऐसे ही पवित्रता के मुताबिक ख्यालात कायम है और  ये बातें  महज हिंदू भाइयों पर नहीं घटती बल्कि मुसलमान व ईसाई भाइयों पर भी वैसी ही घटित है।

 कुछ साल हुए आगरा में हीविट् पार्क के अंदर एक साहब के दान से पब्लिक लाइब्रेरी की बुनियाद रखी गई । वे साहब पक्के रोमन कैथलिक है। उन्होंने इस मौके पर आगरे के आर्चबिशप साहब को निमंत्रित किया ।

क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय
राधास्वामी।।।।।।।।।



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