प्रस्तुति - कृष्ण मेहता: .
एक समय की बात थी एक राजा की राज सभा चल रही थी राजा ने अपनी राज्यसभा में कई अतिथियों को देशभर से बुलाया था उन अतिथियों में एक महान ज्ञानी धनी व्यक्तित्व के स्वामी भी विराजमान थे
राजा की राज सभा चालू हुई सभी लोग वार्तालाप कर रहे थे उसी वक्त कुछ विशिष्ट लोगों एक महत्वपूर्ण विषय पर अपनी टिप्पणियों दे रहे थे विषय था सगुण और निर्गुण भगवान की उपासना अर्थात मूर्ति पूजा और निरंकार आस्थाओं को दर्शाना उस विषय पर राज्य के प्रमुख विशेष अधिकारी राजगुरु विशेष अतिथि एक-एक करके अपने विचारों को प्रकट कर रहे थे कुछ लोगों का मानना था की मूर्ति पूजा वृक्षों की पूजा नदियों की पूजा सही नहीं है कुछ लोग उसे सही मान रहे थे इसी प्रकार यह चर्चा परिचर्चा आगे बढ़ती चली चर्चा और अपनी चरम सीमा पर थी
लोग एक दूसरे से वाक्य युद्ध कर रहे थे।
जब इस परिचर्चा का कोई हल न निकला तब राज्य के विशेष अधिकारी ने राजा से इस पर अपनी राय मांगी राजा ने कुछ देर विचार किया तत्पश्चात अपने विचार राज्यसभा के सम्मुख प्रस्तुत किया राजा ने कहा मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता मूर्ति पूजा नदियों की पूजा वृक्षों की पूजा सही नहीं है भगवान अगर इस दुनिया में है तो वह निराकार है और निराकार प्रभु ही प्रकृति की सच्चाई है राजा की बात से सभी लोग सहमत थे और अतिथि विशेष भी अपनी सहमति राजा की ओर ही दर्शा रहे थे
राजा ने ध्यान दिया अतिथियों में एक विशेष अतिथि इन सब बातों को बहुत देर से सुन रहे थे परंतु कुछ भी टिप्पणी नहीं कर रहे थे वह शांत बैठे थे और सभी की बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे राजा ने उनकी तरफ इशारा करते हुए पूछा आप इस पर क्या विचार रखते हैं क्या आप मुझसे सहमत हैं।
इस पर उस महान अतिथि ने अपनी शांति भंग की और राजा से कहा मैं आपके दरबार में कुछ क्रियाकलाप करने की अनुमति चाहता हूं राजा ने अनुमति दी इसके बाद अतिथि ने कुछ कोरा कागज मंगवाया और उस पर राज्य सभा में उपस्थित सभी लोगों से थूकने को कहा...
सभी पहले तो आश्चर्यचकित हुए फिर एक-एक करके सभी लोगों ने उस कोरे कागज पर थूकना शुरू किया फिर उन अतिथि ने वह कागज राजा के सामने प्रस्तुत किया और राजा से कहा क्या आप इस कागज पर सभी के समान मेरी बात का मान रखेंगे राजा ने अतीत की बात मानी और उस कागज पर वही किया...
फिर कुछ समय के बाद अतिथि ने उस कागज को एक दूसरी जगह पर रख दिया और एक नया कोरा कागज मंगवाया और उस कागज पर राजा का नाम लिख दिया फिर राज्य के सभी अधिकारियों से पहले के समय किए गए क्रियाकलाप अर्थात थूकने की प्रक्रिया को दोबारा करने को कहा राजा की सभा में उपस्थित किसी ने भी कुछ नहीं किया क्योंकि सब जानते थे उस कागज पर राजा का नाम अंकित है इसी प्रकार जब किसी ने भी यह नहीं किया तो उस महान अतिथि ने राजा के सम्मुख वह कोरा कागज प्रस्तुत किया और थूकने के लिए कहा राजा नाराज होकर उस अतिथि से कहते हैं यह आप क्या कह रहे हैं इस कागज पर मेरा नाम लिखा हुआ है और क्या मैं इस कागज पर थूक सकता हूं आपको इसके लिए दंड मिलेगा
अतिथि ने कहा एक पल के लिए शांत हो जाइए मैं आपको यही तो समझाना चाहता हूं कि जब मैंने कोरा कागज प्रस्तुत किया तब उस पर आप के सभी राज्य अधिकारी ने अतिथि गढ़ ने और आपने भी वही किया जो सब ने किया लेकिन जब मैंने दूसरे कागज पर आपका नाम लिखा तो किसी ने भी यहां तक की आपने भी उस कागज को सम्मान दिया इसी समान मूर्ति पूजा वृक्ष की पूजा या पत्थरों की पूजा में आस्था छुपी है हम उन में भगवान को देखते हैं अर्थात उन सब में हमारी आस्था है हमारा विश्वास है हमारा प्रेम है और हम उसमें अपने भगवान को ढूंढते हैं मानते हैं ...
कुछ समय के लिए राजदरबार शांत हो गया सब उस महान अतिथि की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे और और राजा भी बहुत ध्यान से अतिथि की बातों को सुन रहे थे फिर राजा ने अपनी भूल की क्षमा मांगी और अतिथि को आदर देते हुए अपने राज्य में यह ऐलान किया कि वह मूर्ति पूजा पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाएंगे यहां तक कि नदियों की पूजा गायों की पूजा हर पूजा पूरे राज्य में धूमधाम से मनाई जाएगी इस प्रकार राज अधिकारी सारे अतिथि गण राजा और वहां उपस्थित सभी नागरिक उस महान अतिथि के सम्मान में खड़े हुए और उन्हें आदर दिया वह अतिथि कोई और नहीं स्वामी विवेकानंद जी थे।
धमँ संसार गुपँ की तरफ़ से वषॉ ७९७७७४०४६२
मैं आप सबके सम्मुख इसी तरह के कई प्रेरक कहानियां कविताएं और श्लोक प्रस्तुत करता रहूंगा आप इन सब से अच्छी शिक्षा लेकर सही कर्म करें और अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर हो..।
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*🕉श्री संभवनाथाय नम:🕉*
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*🔥अंधा घोड़ा🔥*
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*शहर के नज़दीक बने एक farm house में दो घोड़े रहते थे. दूर से देखने पर वो दोनों बिलकुल एक जैसे दीखते थे , पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है. पर अंधे होने के बावजूद farm के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था. अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता. घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं वो रास्ते से भटक ना जाए. वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता.*
धमँ संसार गुपँ की तरफ़ से वषॉ ७९७७७४०४६२
*दोस्तों, बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं. वो हमारा ख्याल रखते हैं और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं. कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं.*
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