Friday, April 24, 2020

हुजूर साहबजी महाराज/ रोजानावाकियात, सत्संग के उपदेश




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात -11 सितंबर 1932- रविवार:- जब से दयालबाग वापस आये हैं खूब बारिश हो रही है । दयालबाग अपने यौवन पर है ।अब समझ में आता है कि ऋषि लोग जो मालिक के प्रेमी थे क्यों हरे-भरे जंगलों में रहन-सहन अख्तियार करते थे।  साफ सुथरे व आसपास के वातावरण का इंसान के जिस्म व मन पर निहायत जबरदस्त असर पड़ता है । ऐसे मकाम पर अनायास ही मालिक की याद आती है और मन के अंदर भक्ति व प्रेम का भाव रह-रहकर जोश मगरता है।                   तीसरे पर विद्यार्थियों का सत्संग हुआ । मजमून यह था कि राधास्वामी मत में जो साधन कराया जाता है उसका नाम सुरत शब्द अभ्यास है लेकिन शब्द अभ्यास से मतलब महज किसी आवाज का सुनना नहीं है।  बात यह है मालिक की शक्ति से कुल सृष्टि प्रकट हुई है। उसकी शक्ति धारों की शक्ल में सृष्टि के अंदर फैली है। और जहां धार है वहां धुन है।  राधास्वामी मत बतलाता है कि इस धुन को पकड़कर इंसान की रुह मालिक की शक्ति की धारों तक पहुंच हासिल सकती है। शब्द महज गिलाफ है और मालिक की शक्ति की धारे असली चीज है। और असली मतलब उन शक्ति की धारों के साथ ताल्लुक कायम करने से है।  इस अभ्यास से कामयाबी हासिल करने के लिए प्रेम व शौक की बेहद जरूरत है। प्रेम व शौक तभी पैदा होते है जब मन से संदेह दूर हो जाये और संदेह सतसंग के उपदेश सुनने से दूर होते हैं इसलियें हर सुरत शब्द अभ्यास के जिज्ञासु को अव्वल सतसंग में शरीक होकर अपने मन के संदेह मिटाने चाहिए और संदेह दूर होकर मन में काफी प्रेम व शौक पैदा होने पर अभ्यास की कमाई करनी चाहिए।

क्रमश:🙏🏻 राधास्वामी 🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 सत्संग के उपदेश- भाग 2-

 कल का शेष-

आचार्यबिशप साहब ने पानी का एक प्याला लेकर अपने विश्वासों के कुछ मंत्र पढ़े और इसके बाद उस प्याले से पानी लेकर जिसे होली वाटर यानी पवित्र जल कहा जाता है, जगह-जगह बुनियादों पर छिडका। इसी तरह (यानी हिंदू भाइयों के तरीके बमूजिब) जॉर्डन नदी व  चश्मए जमजम का पानी ईसाई व मुसलमान भाइयों के नजदीक पवित्र है।  हमारी मंशा किसी जमात के मजहबी कायदों के मुतअल्लिक़ कोई बहस करने की नहीं है बल्कि इस अम्र की जांच से है कि आवाम के दिल में पवित्रता के मुतालिक क्या-क्या ख्यालात बैठे हुए हैं। संतमत यह सिखलाता है  की पवित्रता सिर्फ आत्मा यानी सुरत के अंदर है और जो हाल रोशनी का है वही  पवीत्रता का है  यानी जैसे रोशन चीज अपने संबंध में आने वाली प्रकाशहीन चीजों को रोशन कर देती है इसी तरह पवित्आत्मा भी अपवित्र से अपवित्र चीज को जो उसके संबंध में आवे,, पवित्र कर देती है । मगर जैसे बावजूद सूर्य की एक ही किस्म की किरणे चमकने के दुनिया के अंदर सब के सब पदार्थ इस रंग के नहीं है बल्कि मुख्तलिफ रंग के हैं, क्योंकि उनकी बनावट इस किस्म की है मुखतलिफ पदार्थ किरणों के मुखतलिफ अंशो को जज्ब करते हैं यानी अक्स डालते हैं इसी तरह आत्मा के संबंध में आने पर मुख्तलिफ पदार्थ मुख्तलिफ दर्जे की पवित्रता हासिल करते हैं। इसलिए अगर किसी पुरुष के अंदर आत्मशक्ति का भरपूर इजहार है और उसका मन व शरीर उसकी आत्मशक्ति की किरणों से रोशन है तो हरचंद उसका मन और शरीर आत्मा के बराबर चैतन्य व पवित्र नहीं हो सकते लेकिन बमुकाबले दूसरे मनुष्यों के मन व शरीर के पवित्र समझे जाएंगे। संतमत की पवित्रता की तारीख से एक यह भी नतीजा निकलता है कि जो शख्स , हिंदू हो या मुसलमान, ऊंची जात का हो या शुद्र व अछूत, अपनी आत्मशक्ति के जगाने का साधन करता है वह पवित्र है और उन लोगों से, जो दूसरे के कारणों से अपनेतई पवित्र समझते हैं, हजारहां दर्जे बढ़कर है। खुशी का मुकाम है कि ब्रह्मांड पुराण के उस श्लोक का रचयिता जिसके अर्थ ऊपर दर्ज किए गए ,संतमत की शिक्षा के साथ सहमत है। असल श्लोक नीचे लिखे जाता है:-'"जन्मना जायते शुद्र:, संस्काराद् द्विज उच्चयते।      वेदपाठाद् भवदे् विप्रो, ब्रह्म जानाति ब्राह्मण:।।"

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।

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