मुबारक भंडारा
करूं क्या बयां उनके रहमोकरम का
दया का सागर उमड़ उमड़ पड़ा।
चौदह अप्रैल की मध्यरात्रि साढ़े बारह बजे
दाता जी का काफिला खेतों को चल पड़ा।
सैलाब प्रेमियों का उमड़ने लगा
वाहनों का सिलसिला चल पड़ा।
साईकिल रिक्शा बस व ट्राली
कारों से भी सफ़र तय था हो रहा।
रात की नीरवता में बस वाहनों का शोर था
नौनिहालों का सिलसिला भी थमता न था।
वीरांगनाओं की अलग आन बान शान थी
सिर पर हेलमेट मुख पर मास्क हाथों में लाठियां थीं।
खेतों का नजारा पूरे शबाब पर था।।
चाय रस्क गुड़ चना अमृत पेय चिड़वा
केले व श्रीखंड का परशाद था।
काम करते करते सभी परशाद पा रहे थे
जूझ कर कटाई में सब भाग ले रहे थे।
रात्रि के एक बजे आरती संपन्न हुई
आरती का परशाद सबको बांटा गया।
प्रात: साढ़े तीन बजे खेतों काम समाप्त हुआ
घर कीओर सबने प्रस्थान किया।
पंद्रह अप्रैल के साढ़े दस बजे संदेश आ गया
दाता जी भंडारे के लिए खेतों में पधार रहे हैं।
आनन फानन सब खेतों को चल दिये
उनके इक इशारे पे सब हाजिर हो गये।
जहां तक जा रही थी नज़र
खेतों में सभी अनुशासनबद्ध बैठे थे।
पंद्रह फीट की दूरी लिए सब प्रेमीजन
सोशल डिस्टेंस का पालन कर रहे थे।
चल रहीं थीं दरातियां गेहूं पर
किंतु निगाहें टिकी थीं सिंहासन पर
सबकी निगाहें टिकी थीं
दाता जी की तशरीफ़ आवरी पर
दाता जी के शुभागमन पर
ग्यारह बजे भंडारा प्रारंभ हुआ।
दो शब्दों के पाठ के उपरांत
दाता जी ने भोग लगाया।
सभी ने अपने अपने स्थान पर प्रशाद ग्रहण किया।
गेहूं कटाई का सिलसिला चलता रहा
सूर्य का प्रकाश भी बाधा बन न सका।
निर्मल रास लीला का नजारा चहुं ओर था
इक अजब सा नशा फैला सब ओर था।
दाता जीके चारों ओर सुरतें उमड़ रही थीं
नन्हे सुपरमैनों की भी भीड़ जमीं हुई थी ।
दाता जी सुपरविजन कर रहे थे खेतों में
सब प्रेमियों में अजब सा उमड़ा जोश था।
न तन की सुध थी न परवाह किसी की
सुरत डोर उनके चरणों में बंधी थी।
सुपरमैन की पीटी हुई उसी खेत में
वीरांगनाओं का प्रर्दशन भी अद्भुत रहा।
शाम के साढ़े तीन बजे खेतों की छुट्टी हुई
कारवां धीरे धीरे सिमटने लगा।
सब अपने अपने घर को मुखातिब हुए
रात का अंधकार घिरने लगा।
साढ़े दस बजे रात को एक संदेश गूंजने लगा
कार रेडी+++++++++++++++
कृष्ण की बांसुरी सुन घर-बार छोड़कर
गोपियां उनकी ओर दौड़ पड़तीं थीं।।
वैसे ही सारी संगत अपने अपने घर से चल दी
खेतों को दाता जी के पथप्रदर्शन पर।
यमुना का किनारा था बह रही थी शीतल पवन
आधी रात का समय था चांद अर्श पर खिला था।
आशिकों को सिर्फ अपने आका का ख्याल था
रात को भी दिन का सा आभास था।
हर काम यथावत् पूर्ण हो रहा था।
इलायची दाने का परशाद चाय रस्क
अमृतपेय गुड़ चना चिड़वा व ककड़ी का परशाद
हर प्रेमी को वितरित हो रहा था।
चल रहीं थीं दरातियां उसी जोश में
तीन बजे सुबह छुट्टी का ऐलान सुन
सभी प्रेमीजन घर की ओर चल दिए।
था सुकून और आनंद मालिक के संसर्ग का
उन पलों में स्वर्ग हमारी गोद में था।
सुपरमैन और वीरांगनाओं की सेल्फडिफेंस पीटी
भंडारे वाले दिन तीन बार संपन्न हुई।
तीन शिफ्टों में झो खेतों का काम हुआ
दाता जी का साथ करीब बारह घण्टे तक मिला।
हर प्रेमी। प्रेम भक्ति में डूबा हुआ।
भंडारे का पवित्र दिवस यूं बीत गया
अविस्मरणीय स्मृतियों से झोली भर गया।
सराहें क्या भाग अपने जो मालिक का पर्याय मिला उनके स्वर्गिक आभामय स्वरूप का दीदार मिला।
वे दयाल यमुना के तट पर रचा रहे थे निर्मल रासलीला
सारी संगत को अपने प्रेमरंग में रंग। दिया।
उनकी आज्ञाओं पर यूं ही हम चलते रहें
उनकी वात्सल्य भरी गोद में मग्न हम रहें।
आरज़ू है यही बिनती है यही
उनकी कसौटी पर खरे हम उतरते रहें।
उनके रहमोकरम के काबिल हम बनें।
उनके सिवा कुछ न अब चाहिए
बस प्यार भरी इक नज़र चाहिए।
बस प्यार मरी एक नजर चाहिए।।
स्वामी प्यारी कौड़ा
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